इंडियन बायोडायवर्सिटी एक्ट 2002 में प्रस्तावित बदलाव प्रस्तुत हुआ बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी अमेंडमेंट बिल 2021

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पृष्ठभूमि

भारत में सन 2002 से बायोडायवर्सिटी एक्ट लागू किया गया  है जिसकी पृष्ठभूमि में है सी.बी.डी. यानि कन्वेंशन ऑन बायोडायवर्सिटी

सन 1992 तक जब सी.बी.डी. यानि कन्वेंशन ऑन बायोडायवर्सिटी (Convention on Biodiversity) का मसौदा तैयार हुआ तो उस वक़्त परम्परागत ज्ञान के संरक्षण का विचार एकदम नया था और किसी को कोई आईडिया नहीं था कि इसे कैसे मूर्त रुप दिया जाएगा

मई 1998 में जब कॉनफेरेन्स ऑफ़ पार्टीज़ यानि कि सदस्य देश आपस में मिले तो एक वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया जिसको स्थानीय समाजों के पास मौजूद परम्परागत ज्ञान के संरक्षण के लीगल तरीके ढूंढने का काम दिया गया और आर्टिकल 8 जे को कैसे मूर्तरूप में लाया जाये इस बात रास्ता निकालने को कहा  गया

मई 2002 में कॉनफेरेन्स ऑफ़ पार्टीज़ यानि कि सदस्य देशों की पांचवीं कन्वेंशन हुई तो इस वर्किंग ग्रुप के काम को सभी देशों के लिए लीगल फ्रेमवर्क बनाने तक एक्सटेंड कर दिया गया

सी.बी.डी. का आर्टिकल 8 जे क्या कहता है?

Article 8(j) states

Each contracting Party shall, as far as possible and as appropriate:

Subject to national legislation, respect, preserve and maintain knowledge, innovations and practices of indigenous and local communities embodying traditional lifestyles relevant for the conservation and sustainable use of biological diversity and promote their wider application with the approval and involvement of the holders of such knowledge, innovations and practices and encourage the equitable sharing of the benefits arising from the utilization of such knowledge innovations and practices.

आर्टिकल 8 जे कहता है

कि हरेक कांट्रेक्टिंग पार्टी यानि के सदस्य देश जितना उससे सम्भवहो सकेगा अपने अपने देशों के मौजूदा संविधान के अनुसार स्थानीय लोगों के परम्परागत ज्ञान आविष्कारों और कार्यकलापों उनकी परम्परागत जीवनशैली को और बायोडायवर्सिटी के टिकाऊ प्रयोग एवं संरक्षण हेतु और उनके ज्यादा से ज्यादा प्रयोग हेतु उस ज्ञान को जानने वाले और उन आविष्कारों को करने वालों की अनुमति और सहमति से और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले आर्थिक लाभ को बराबरी से बांटने की व्यवस्था स्थापित करेगा

अब 19 वर्षों के बाद स्थानीय तौर पर तीन बड़े बदलाव बायोडायवर्सिटी एक्ट में प्रस्तावित किये गए हैं

प्रस्तावित बदलाव

नंबर एक है बायोडायवर्सिटी की परिभाषा

हमारे ग्रंथों में  वसुवधैव कुटुंबकम यानी कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव एक परिवार का हिस्सा हैं की बात की यी है और हमारे श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ने माता धरत महात के विचार को हमें बताया है और हम सुबह धरती पर पैर रखने से पूर्व अपने मन में बालक का भाव लेकर आते हैं

नए एक्ट में बायोडायवर्सिटी की भाषा को बदल कर बायोरिसोर्स किया जाना प्रस्तावित है यह शब्द मॉं को संसाधन बताने की और इशारा करता है जो हमारी मूल भावना से मेल नहीं खाता है  रिसोर्स आर्थिक संसाधन तक तो ठीक लगता है लेकिन धरती जो सब जीवों का घर है और हमारी जैव विवधता एक सांझी सम्पति है |

इसीलिए आपको यह कैसा लगता है आप आपने मन से पूछें और इस विषय में अपनी राय कायम करें  हमारी जैव विवधता हमारे जीवन का ताना बाना है न कि दोहन की वस्तु

नंबर दो

नए एक्ट में धारा  GA  और GC को जोड़ा जाना प्रस्तावित किया गया है जिसके तहत सभी परम्परिक बीजों को लैंड रेस कहा जायेगा भाई लैंड से कोई बीज की किस्म अपने आप नहीं निकलती उसे हमारे बुजुर्गों ने अपनी रचनात्मकता से सैंकड़ों वर्षों के अथक परिश्रम से संसाधित किया हुआ है एक समय था जब भारत में दो लाख से ज्यादा धान की ही किस्में हुआ करती थी

अब नए एक्ट में कम्पनी द्वारा अविष्कृत माने जाने का प्रावधान है अब आप खुद ही सोच कर बाताओ की कोई कम्पनी किसी किस्म को कैसे अविष्कृत कर सकती है जबकि जिस बीज पर कम्पनी ने काम किया है उसको भी तो हमारे पूर्वजों ने पहले बनाया हुआ था उसी में तो सुधार किया है कम्पनी ने

धारा GA  में फॉक वैरायटी यानी उसे कहा गया है जिसे किसानों ने इन्फोर्मली आपस में अदला बदली करके उगाया और विकसित किया है

धारा GC  में लैंड रेस उस किस्म को कहा गया है जिसे प्राचीन किसानों और उनके वंशजों ने उगा कर विकसित किया है

नम्बर तीन

जो तीसरा बड़ा बदलाव किया जा रहा है वो हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त स्थानीय जनता के सामाजिक अधिकारों में बदलाव की और इशारा करता है

कंसेंट ऑफ़ कम्युनिटीज यानि कि भारत के हरेक राज्य में स्थापित स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड्स जिन्हे इंडियन बायोडायवर्सिटी एक्ट 2002 लागू किये जाने के बाद स्थापित किया गया है अब उसको एक सेंट्रल अथॉरिटी के मार्फत  बायपास किया जा सकेगा और सारी ताकत सेंट्रल अथॉरिटी के हाथों में निहित रहेगी

संसद की कानून बनाने की ताकत भी इसमें जाती हुई लग रही है

सेक्शन 6 (3) में बदलाव प्रस्तावित किया गया है जिसमें संसद द्वारा बनाया गया और पारित किया गया कानून लिखना शब्द अब अनिवार्य ना रहेगा

सेक्शन 18 में बदलाव के तहत सेन्ट्रल अथॉरिटी को बायोरिसोर्सेज तक पहुँच और बराबरी से लाभ के बंटवारे समबन्धित नियम  बनाने की ताकत देने का प्रस्ताव रखा गया है जिससे फिर संसद के अधिकारक्षेत्र से बात जाती हुई प्रतीत हो रही है

बायो पायरेसी के कुछ उदहारण

  1. नीम का पेटेंट
  2. बासमती का पेटेंट
  3. एक प्राइवेट कम्पनी ने 22 972 चावल की परम्परागत किस्मों  जिन्हे डॉ आर.सी. रिछारिया (Dr.R.C.Richaria) जी ने अपना पूरा जीवन लगा कर एकत्र किया था और उन्हें इंदिरा गांधी एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने प्राइवेट कम्पनी के साथ एक MoU पर हस्ताक्षर करके ट्रांसफर करने का काम शुरू कर  दिया था लेकिन जागरूक जनता के हस्तक्षेप के बाद यह कार्रवाई रुक गयी थी
  4. हल्दी का पेटेंट

भारत की संसद मांग रही है आपके सुझाव

लोकसभा ने 20 दिसंबर 2021 को एक जॉइंट कमेटी का गठन किया है जिसका नाम जॉइंट कमेटी ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी अमेंडमेंट बिल 2021 रखा गया है इस कमेटी की और से 16 जनवरी 2022 को सभी नेशनल न्यूज़पेपर्स में एक विज्ञापन के माध्यम से देशवासियों से आह्वान किया गया है कि वे नए बिल में प्रस्तावित प्रावधानों के बारे में अपने विचार और सन्तुतियाँ भेजें ताकि कानून बनाने में जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके

भारत की जनता से आह्वान किया गया है कि वे अपने विचार 30 जनवरी से पूर्व हिंदी या अंग्रेजी में लिख कर निम्नलिखित पते पर ईमेल फैक्स या डाक के द्वारा भेजें

Joint Secretary (JM), Lok Sabha Secretariat, Room No.440 Parliament House, Annexe New Delhi 110001, Fax Number 011-23017709 Telephone Number 011-23034440/23035284 Email: [email protected]

Kind Attention Dr.Sanjay Jaiswal M.P. लिखना ना भूलें