चितपावन ब्राह्मण

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चितपावन ब्राह्मणों के बारे में आज भी देश में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

सर रिचर्ड टेंपल जो ब्रिटिश लोक सेवक थे और 1847 से 1880 तक लोकसेवा में रहे थे और 1877 से 1880 तक बॉम्बे के कमिश्नर थे ने उस वक्त के वासराय लॉर्ड लिट्टन को लिखे अपने दो गुप्त पत्रों में चितपावन ब्रह्मणो का जिक्र किया था और उनकी ताकत से परिचित कराया था।

रिचर्ड टेंपल कहते हैं ईरान से समुंदर के रास्ते महाराष्ट्र के इलाके मे पहुंचे चितपावन ब्राह्मण पश्चिमी घाट के कोकण इलाके में बहुत बड़े भूभाग में बसते हैं और दुनिया के हरेक काम में माहिर हैं।

चाहे छोटी मोटी दुकानदारी व्यापार, कृषि, नौकरी, प्रशासन, कूटनीति,सैनिक सेवा, युद्धकला, राजकाज कोई भी काम हो चितपावन ब्राह्मण हरेक काम को करने में महारत रखते हैं।

पेशवा जो खुद एक चितपावन ब्राहमण था उसके शासन काल में ये समाज फुल तरक्की पर था और इनके पास बड़ी बड़ी जागीरें थी।

अंग्रेजों ने जब पेशवा से सत्ता छीन ली और अपना अंग्रेजी निजाम लागू किया तो चितपावन ब्राह्मणो ने वक्त की नजाकत को समझते हुए अपने बच्चे अंग्रेजी में पारंगत किये और एक समय आया कि 104 जजों में से 33 चितपावन ब्राह्मण थे।

बॉम्बे प्रेसिडेंसी में भारतीय लोगों के लिए सबसे बड़ा पद ममलातदार यानी डिप्टी रेवेन्यू कलेक्टर का होता था और इस पद पर 41% कर्मचारी चितपावन ब्राह्मण थे।

रिचर्ड टेंपल अपने पत्र में लॉर्ड लिट्टन को लिखता है कि मैंने बड़ी बारीकी से इस फैक्ट को चेक किया है कि ये सभी लोग इतनी बड़ी संख्या में एक दूसरे को फेवर करके पहुंचे हैं क्या?

मैंने यह पाया है कि ये लोग केवल मेरिट के दम पर इन पदों पर आये हैं।

यही बात हमारे लिए चिंता की है क्योंकि चितपावन ब्राह्मण हमारी भाषा के माध्यम से हमारे मूड्स को और हमारे काम करने के तरीके को समझने लगे हैं।

ये लोग राष्ट्रवाद की प्रेरणा से प्रेरित हैं और किसी भी रूप में आगे चलकर हमारे लिए मुसीबतें पैदा कर सकते हैं।

रिचर्ड टेंपल ने बताया कि चितपावन खुद को ब्राह्मण भगवान परशुराम वंशज मानते हैं और 14 गोत्रों में इनका समावेश है। आदिगुरु शंकराचार्य के साथ भी इनका संबंध जुड़ता है।

हाल ही में पूना में कार्यरत एक छोटा clerk वासुदेव बलवंत फड़के ने मौका मिलते ही हथियार बंद खूनी बगावत कर के सभी को चौंका डाला है।

महाराष्ट्र में लेखक बैरिस्टर चिन्तक विचारक डॉक्टर बिजनेसमैन से लेकर सरकारी नौकर बड़े पदों पर चितपावन ब्राह्मण समाज के लोगों ने अपनी पकड़ बना ली थी।

उस दौर के कुछ बड़े नाम इसप्रकार हैं।

महादेव गोविंद रानाडे, बाल गंगाधर तिलक, विष्णु शास्त्री कृष्ण शास्त्री चिपलूनकर, गोपाल गणेश अगरकर, वामन शिव राम आप्टे, गोपाल कृष्ण गोखले आदि आदि

चितपावन ब्राह्मणों का आधुनिक भारत की अवसंरचना मे बहुत बड़ा योगदान रहा है।

हालांकि अनगिनत कारणों से चितपावन ब्राहमणो के बारे में हमारे इतिहास में कुछ खास बताया नहीं जाता है।

डबल मास्टर डिग्री करके भी मुझे इनके बार कभीभी किसी भी टेक्स्ट बुक में पढ़ने को नहीं मिला। बस अभी बाहर दुनिया को देख रहे हैं तो मालूम चल रहा है।