शुभ लाभ आर्थिक संगठन

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first meeting of shubh labh
गाँव गुमथला राव ब्लाक रादौर जिला यमुनानगर हरियाणा में शुभलाभ आर्थिक संगठन की पहली बैठक 09/09/2021

भूमिका

हमारा देश असल में एक दुनिया हैं यहाँ आदिकाल से ही पूरे विश्व से शोधार्थी आते रहे हैं और यहाँ से सीख सीख कर ज्ञान और अनुभव पूरी दुनिया में ले जाते रहे हैं। शोधार्थियों के शोध ग्रंथों को पढ़ कर और उनके अनुभवों को सुन कर यहाँ की धन संपदा और वैभव को लूटने के मकसद से यहाँ हमलावर भी आते रहे हैं जिन्होंने हमारी धन संपदा को लूटने के साथ साथ हमारे ज्ञान केन्द्रों जैसे नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविधालयों को नष्ट करने का काम किया है जिससे हमारा बौद्दिक विकास रुक गया और हम अजीब से वैचारिक भवंर में फंसते चले गये।

सोहलवीं शताब्दी में जब अंग्रेजों का हमारी भूमि पर पदार्पण हुआ तो उन्होंने हमारे समाज को उपभोक्ता वर्ग में तब्दील करने के मकसद से हमारे गुरुकुलों (जो उस समय लाखों की संख्या में थे) को नष्ट करने के साथ साथ यहाँ के कामगारों के अंगूठे काटने से लेकर हरेक व्यवस्था को नष्ट करने का कार्य किया।

आज उसी व्यवस्था का परिणाम है कि हमारा पी.एच.डी. किया हुआ बालक भी नौकरी का मोहताज है। मतलब पढ़ाई लिखाई का कोई व्यवाहरिक महत्व है नही। हमें अपने गाँव के इतिहास, भौगोलिक स्थिति, वनस्पति, जीव जंतु इत्यादि की कोई ख़ास जानकारी है नही। जबकि हमारे पहले वाली जो पीढियां थी उनके पास व्यवहारिक ज्ञान हमसे बहुत अधिक था और वे अपना समय अच्छा पास करके गये हैं।

मौजूदा दौर टेक्नोलॉजी का है और मैं यह समझता हूँ कि परमात्मा ने हम भारतवासियों को एक चांस दिया है कि इसके माध्यम से हम आपस में जुड़कर इसका सदुपयोग करके पिछले एक हज़ार साल में हुए समाजिक , वैचारिक और आर्थिक नुक्सान को हम सुधार लें।

हम सभी ने बचपन में अपनी किताबों में पढ़ा है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यह बात पूरी तरह से गलत है। इस बात को ब्रिटिश लोगों ने साजिशाना तरीके से हमारी पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया और हमारे दिमाग में यह बैठा दिया कि हमने कृषि से आगे नही सोचना है। जबकि सच्चाई यह है कि भारत पुरातन काल से ही एक औद्योगिक राष्ट्र रहा है हमारे यहाँ हरेक गाँव में जो मानव समूह निवास करते हैं वें किसी ना किसी काम के सुपर एक्सपर्ट हैं। बेशक वो लकड़ी छीलना हो, लोहा गलाना हो , उसके औजार बनाना हो या अस्त्र शस्त्र आदि बनाने हों। देश के हरेक गाँव कसबे की कोई ना कोई मशहूर वस्तु आज भी मिल जाती है।

इसका अर्थ यह है कि हमारी जड़ों में खून में उद्योग ही उद्योग है। हम अपने वैभव को पुन: प्राप्त न कर लें इसी के लिए यह जातियां ब्रिटिश लोगों ने रिकार्ड बनाते समय लिख डाली और लोगों को आपस में लडाने के लिए झूठी सच्ची कहानियाँ बना बना कर पत्र पत्रिकाओं और पुस्तकों में लिख दी। जिन्हें पढ़ पढ़ कर आज देश में लोग आपस में खिंचे खिंचे से घूम रहे हैं और कभी कभी तो ऐसा महसूस होता है कि देश गृह युद्ध की ओर बढ़ रहा है।

मुझे रौशनी की किरण कहाँ से मिली

साल 1997 सितम्बर से लेकर साल 2000 तक मैं हरियाणा कृषि विश्वविधालय का छात्र था और मेरा विषय था फ़ूड टेक्नोलॉजी मैं अपने विषय को लेकर खुश नही था क्यूंकि मैं यह देख पा रहा था कि हम कदम कदम पर मौत बनाने की विधि पढ़ और समझ रहे हैं। संयोग से मेरा परिचय आजादी बचाओ आन्दोलन से हुआ जिसे इलाहबाद विश्वविधालय के प्रोफेसर बनवारीलाल शर्मा जी चलाते थे। भाई राजीव दीक्षित जी का नाम तो आपने सुना ही होगा उनके गुरु भी प्रोफेसर बनवारी लाल शर्मा जी ही थे। इन लोगों के साथ रह कर मुझे भारत के असली इतिहास को जानने की राह मिली और फिर अगले इक्कीस वर्ष मैं बिना किसी चिंता के अकेला अपने शोध में लगा रहा।

मैंने इस दौरान कानून की पढ़ाई भी की और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कृषि कानून कैसे है और हम कहाँ मार खा रहे हैं और क्या हम इस स्थिति को पलट सकते हैं बस इसी सोच विचार में मैं डूबा ही था कि मुझे किसानों को आर्थिक रूप से संगठित करने का विचार आ गया । यह विचार मेरी एल.एल.एम. की थीसिस पर काम करके उपजा था जहाँ मुझे दुनिया के विभिन्न देशों में किसानों के द्वारा खड़े किये गये आर्थिक संगठनों के बारे में पढने का और सीखने का अवसर मिला था।

साल 2016 से लेकर 2021 तक मुझे पांच राज्यों के 18 किसान समूहों के साथ काम करने का अवसर मिला जिन्हें मैंने कम्पनी बनाने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने कम्पनियां बनाई अपने पैसे इक्कठे किये और आज उनके अच्छे खासे कारोबार बन गये हैं और वे सामूहिक रूप से काम कर रहे हैं ।

महिलाओं के आर्थिक संगठन की कल्पना

मेरे गुरु जी प्रोफेसर अनिल गुप्ता जी जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित मैनेजमेंट संस्थान में अध्यापन करते हैं, जी ने लगभग 18 वर्ष पहले मुझे एक बात कही थी कि यदि इस देश में सही मायनों में कोई वैचारिक क्रान्ति करनी है तो उसमें महिलाओं का योगदान अवश्य होना चाहिए और यदि उस क्रान्ति की सूत्रधार महिलाएं ही हों तो देश को सही राह पर जल्दी चलाया जा सकता है ।

मेरे पास महिलाओं के समूह के साथ काम करने का अवसर कभी नही आया और मैं अपनी तैयारी में और शोध में लगा रहा साल 2021 में गुरुग्राम की रीड इंडिया संस्था की कंट्री डायरेक्टर मैडम गीता मल्होत्रा जी से मेरी मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे महिलाओं के एक समूह को जड़ी बूटी और खाद्य पदार्थों की एक ट्रेनिंग कराने के लिए कहा ।

लेकिन जब मैं रानी लक्ष्मी बाई संगठन यमुनानगर की महिलाओं से मिला तो मुझे उनका उत्साह देख कर पूज्य गुरुदेव प्रोफेसर अनिल गुप्ता जी का 18 वर्ष पूर्व कहा गया कथन याद आ गया और मेरे मन में यह प्रेरणा आई कि हम एक आर्थिक समूह का गठन करें और आगे चलकर एक औद्योगिक क्रांति की नीवं रखें जो सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करे।

शुभ लाभ आर्थिक संगठन

मुझे ऐसा लगता है कि आर्थिक जगत से कदमताल करने के लिए पहले ट्रेनिंग करनी चाहिये और छोटे छोटे लक्ष्यों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए क्यूंकि यह छोटे छोटे लक्ष्य बहुत कुछ सिखायेंगे और आत्मविश्वास पैदा करेंगे।

एक आर्थिक संगठन को खड़ा करने के लिए निम्नलिखित चार घटकों की आवश्यकता होती है :

एक दूसरे पर विश्वास करने वाली महिलाओं का समूह

धीरे धीरे और नियमित रूप से पूँजी को जमा करने की आदत

एक चार्टेड अकाउंटेंट और एक कम्पनी सेक्रेट्री का सहयोग एवं मार्गदर्शन

बाजार की समझ और धीरे धीर विकिसत होती पकड़

क्रमश:

इस लेख को मैं फिलहाल यहीं समाप्त कर रहा हूँ लेकिन यहाँ से आगे दूसरे लेख को लिखूंगा और पूरा प्लान और हरेक स्टेप को कैसे कवर किया जायेगा मैं लिख कर आपके सामने रखूँगा । आप सभी से निवेदन है कि इन लेखों को पढ़ें और जो सवाल आपके मन में उठें उन्हें ग्रुप में पूछ लें । मैं सभी के जवाब अपनी समझ और अनुभव के आधार पर देने की कोशिश करूँगा । मैं हरेक बात को आपको लिख कर बताउंगा ताकि किसी प्रकार का कन्फ्यूजन किसी को ना रहे और हमारा संवाद एकदम सही दिशा में चले ।