पंचायत मौसम सेवा

61 / 100

बड़े हर्ष के साथ आपको सूचित कर रहा हूँ कि पिछले सात महीनों से हम पंचायत स्तर पर मौसम (Panchayat Mausam Sewa) की जानकारियां भेजने लायक व्यवस्था बनाने में जुटे थे और इसके लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग और पंचायती राज मंत्रालय के साथ मिलकर www.greenalerts.in पोर्टल को विकसित किया जा रहा था।

कल भारत के उपराष्टृपति श्रीमान जगदीप धनखड़ जी ने अपने करकमलों से इसे नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में इसे राष्ट्र को समर्पित किया।

इस फैसिलिटी को भारत सरकार की पब्लिक प्राईवेट पार्टनेरशिप नीति के तहत जनहित में विकसित किया गया है। पंचायत स्तर का पूर्वानुमान और कृषि सलाह बताने के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग ने तकनीकी रिसोर्स की व्यवस्था की है।

उससे आगे पब्लिक इंटरफेस विकसित करने के लिए युवा उद्यमियों सरदार संदीप सिंघ जी और जितेंद्र सैनी जी अंबाला निवासी ने अपनी कम्पनी साईलेक्स सॉफ्टवेयर के माध्यम से सहयोग किया है।

जिसके लिए राष्ट्रहित में उन्होंने किसी प्रकार का कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया है।

ग्रीन अलर्टस प्रणाली को विकसित करने का विचार साल 2017 में मेरे सीनियर साथी परम आदरणीय दिलीप सिन्हा (गन्ना विशेषज्ञ) जी दिया था और इसपर काम करने का विचार और हिम्मत सरदार संदीप सिंघ जी से मुलाकात के बाद ही संभव हो सकी है।

किसान संचार के चेयरमैन डॉ गणेश चंद्र श्रोत्रिय जी के काबिल मार्गदर्शन में अब देश की एक एक पंचायत को जोड़ने का काम चल रहा है।

भिवानी जिले के 34 पंचायतों को समेत समस्त ग्रामवासियों को श्रीमान सोमवीर कादयान BDPO भिवानी जी के सहयोग से पंचायत मौसम सेवा में जोड़ा जा चुका है।

शेष भारत को जोड़ने के लिए किसान संचार के द्वारा हरेक राज्य हेतु विशेष नम्बर जारी किये गए हैं।

पंचायत के लिए जुड़ने के प्रक्रिया बेहद आसान है। अपने राज्य के नम्बर को अपने गाँव के व्हाट्स एप्प ग्रुप में नम्बर को सेव करवाना है और बस काम हो गया।

नम्बर सेव करवाने के अगले 24 घंटे बाद से पंचायत मौसम सेवा उस व्हाट्स एप ग्रुप में उस ब्लॉक पंचायत के वेबपेज का लिंक पोस्ट करना शुरू कर देगी जहाँ पर अगले पांच दिनों के मौसम का पूर्वानुमान और कृषि सलाह को पढ़ा जा सकता है।

इस पूरी प्रणाली को विकसित करने हेतु भारत मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ सुभाष चंद्र भान और डॉ प्रियंका सिंह जी का विशेष सहयोग और योगदान है जिसके बिना इस प्रणाली को विकसित कर पाना संभव नहीं था।