समाज सेवा और सम्मान

नारायणगढ़ सिविल हॉस्पिटल में सुबह आठ बजे मेरे एक मित्र श्रीमान अजय वालिया जी दिखाने के लिए ओपीडी की लाइन में लगने लगे तो उसने देखा कि लाइन अभी लंबी है इधर पेट मे चूहे कूद रहे थे तो अपने से आगे वाले को बोल कर नज़दीक की दुकान से एक सैंडविच और पीने के लिए लस्सी का पाउच ले आये और लाइन की साइड में बैठ कर खाने लगे तभी उनका ध्यान एक आठ साल के बच्चे ने आकर्षित किया जो बेहद भूखी ललचाई नज़रों से उसे देख रहा था। उनसे रहा नही गया और उन्होंने इशारों ही इशारों …

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आर्थिक संगठन का स्वरुप कैसा होगा और यह काम कैसे करेगा

आर्थिक संगठन की आत्मा होती है : पूँजी यानि की कैपिटल जो आज हर किसी के पास नही होती है, पूँजी की मदद से ही सभी व्यापारिक गतिविधियाँ चलाई जा सकती है। पूँजी को हाथ में कैश के रूप में नही रखा जा सकता है। इसके लिए एक बैंक खाते की आवश्यकता होती है और वो भी करंट अकाउंट होना चाहिए क्यूंकि हमें ऐसा बैंक खाता चाहिए होता है जिसमें जितनी बार मर्जी लेन देन किया जा सके। बचत खाता यानी सेविंग अकाउंट में तो केवल सीमित लेन देन ही किया जा सकता है। बैंक खाता खोलने के लिए एक …

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शुभ लाभ आर्थिक संगठन

भूमिका हमारा देश असल में एक दुनिया हैं यहाँ आदिकाल से ही पूरे विश्व से शोधार्थी आते रहे हैं और यहाँ से सीख सीख कर ज्ञान और अनुभव पूरी दुनिया में ले जाते रहे हैं। शोधार्थियों के शोध ग्रंथों को पढ़ कर और उनके अनुभवों को सुन कर यहाँ की धन संपदा और वैभव को लूटने के मकसद से यहाँ हमलावर भी आते रहे हैं जिन्होंने हमारी धन संपदा को लूटने के साथ साथ हमारे ज्ञान केन्द्रों जैसे नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविधालयों को नष्ट करने का काम किया है जिससे हमारा बौद्दिक विकास रुक गया और हम अजीब से …

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गधे की कब्र और अंधविश्वास का कारोबार

आचार्य रजनीश एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्‍न हो गया। और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्‍न था। गधे के साथ, अब उसे पेदल यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना पड़ता था। और गधा बड़ा स्‍वामीभक्‍त था। लेकिन एक यात्रा पर गधा अचानक बीमार पडा और मर गया। दुःख में उसने उसकी कब्र बनायी, और कब्र के पास बैठकर रो रहा था कि एक राहगीर गुजरा। उस राहगीर ने सोचा कि जरूर किसी महान आत्‍मा की मृत्‍यु हो गयी है। तो वह भी झुका कब्र के …

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निब वाले पेन हमारा बचपन और हम

जब हम स्कूल में पढ़ते थे उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था। तब कैमलिन और चेलपार्क की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे और जिन्होंने भी पैन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे। महीने में दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी और लगभग सभी को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है। हर क्लास में एक …

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ये कहाँ आ गए हम

शिव शुक्ल किसी दिन सुबह उठकरइसका जायज़ा लीजियेगा , कि कितने घरों मेंअगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं ? कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव,पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़, मुम्बई, कलकत्ता,मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसेबड़े शहरों में जाकर बस गये हैं ? आप एक बार उन गली मोहल्लों सेपैदल निकलिएगा, जहाँ से आपबचपन में स्कूल जाते समय यादोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे. तिरछी नज़रों से झाँकिए हर घर की ओर. आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर,बस किसी-किसी घर के बाहर या खिड़की में आते-जाते लोगों को ताकतेबूढ़े जरूर मिल जायेंगे. आखिर इन सूने …

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मेरा 9/11 वाला अनुभव

सन 2001, सितम्बर 11 को शाम साढ़े पांच बजे अहमदाबाद से आश्रम एक्सप्रेस में बैठा था दिल्ली के लिए , उन दिनों नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के साथ मिलकर उत्तर भारत के देहातों में ग्रामीण आविष्कारकों और परम्परागत ज्ञान धारकों को ढूँढने और उनकी जानकारियों का डेटाबेस बनाने का काम शुरू करने के लिए प्रोफेसर अनिल कुमार गुप्ता जी के साथ प्लान फाइनल करने के बाद ट्रेन में सवार हुआ था | पिछले एक वर्ष में इंडियन आर्गेनिक फ़ूड नईदिल्ली में प्राइवेट नौकरी और दफ्तरी हिसाब किताब जायजा लेने के बाद नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के साथ काम करना ऐसा लग रहा …

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संस्कारों की खेती कैसे की जाती है

सर! मुझे पहचाना?” “कौन?” “सर, मैं आपका स्टूडेंट। 40 साल पहले का “ओह! अच्छा। आजकल ठीक से दिखता नही बेटा और याददाश्त भी कमज़ोर हो गयी है। इसलिए नही पहचान पाया। खैर। आओ, बैठो। क्या करते हो आजकल?” उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा। “सर, मैं भी आपकी ही तरह टीचर बन गया हूँ।” “वाह! यह तो अच्छी बात है लेकिन टीचर की तनख़ाह तो बहुत कम होती है फिर तुम कैसे…?” “सर। जब मैं सातवीं क्लास में था तब हमारी कलास में एक वाक़िआ हुआ था। उस से आपने मुझे बचाया था। मैंने …

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दूब घास दूर्वा दरोब Cynodon_dactylon एक चमत्कारी औषधि

नंद किशोर प्रजापति कानवन चार दिन पहले कुशग्रहणी अमावस्या थी तब हमनें कुश/डाब की चर्चा की थी ,उसके गुणों ओर धार्मिक महत्व को जाना था। आज गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की प्रिय दरोब/दूर्वा का दिन हैं। आज की परिचर्चा में हम दरोब के गुणों को जानने का प्रयास करेंगे। दूर्वे अमृत संपन्ने शत मूले शतांकुरे!शतंम् हरती पापानी शतंम् आयुष्य वर्धिनी!! हे दूर्वा तुम अमृत संपन्न हो.. पाप और रोगो का निवारण करने वाली हो .शत मूल व शतांकुर वाली दुर्वा आपको प्रणाम दूर्वा के अनेक नाम हैं मालवांचल में इसे दरोब नाम से जाना जाता हैं।साथ इसे दूब, अमृता,अनंता, …

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विधि का विधान

प्रदीप सिसोदिया भगवान श्री राम का विवाह और राज्याभिषेक, दोनों शुभ मुहूर्त देख कर किए गए थे; फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ, न ही राज्याभिषेक! और जब मुनि वशिष्ठ से इसका उत्तर मांगा गया, तो उन्होंने साफ कह दिया “सुनहु भरत भावी प्रबल,बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।हानि लाभ, जीवन मरण,यश अपयश विधि हाथ।।” अर्थात – जो विधि ने निर्धारित किया है, वही होकर रहेगा! न राम के जीवन को बदला जा सका, न कृष्ण के! न ही महादेव शिव जी सती की मृत्यु को टाल सके, जबकि महामृत्युंजय मंत्र उन्हीं का आवाहन करता है! न गुरु अर्जुन देव जी, और …

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