मेरा 9/11 वाला अनुभव

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सन 2001, सितम्बर 11 को शाम साढ़े पांच बजे अहमदाबाद से आश्रम एक्सप्रेस में बैठा था दिल्ली के लिए , उन दिनों नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के साथ मिलकर उत्तर भारत के देहातों में ग्रामीण आविष्कारकों और परम्परागत ज्ञान धारकों को ढूँढने और उनकी जानकारियों का डेटाबेस बनाने का काम शुरू करने के लिए प्रोफेसर अनिल कुमार गुप्ता जी के साथ प्लान फाइनल करने के बाद ट्रेन में सवार हुआ था |

पिछले एक वर्ष में इंडियन आर्गेनिक फ़ूड नईदिल्ली में प्राइवेट नौकरी और दफ्तरी हिसाब किताब जायजा लेने के बाद नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के साथ काम करना ऐसा लग रहा था के परमात्मा ने इस संस्था को भारत सरकार के जरिये मेरे लिए बनवाया है | आँखों में नए काम के सपने संजोये ट्रेन में सवार हो गया था , तब ऐसे इन्टरनेट नहीं थे के रेल में भी मेल चेक हो जाए , तब न फेसबुक थी और न व्हाट्स एप्प | उस जमाने में हम ट्रेन में ही दोस्ती बना कर टाइम पास करने के उस्ताद होते थे |

उस रात मारवाड़ जंक्शन से एक नया यात्री चढ़ा “अमित गुप्ता ” , उसके ट्रेन में पैर रखते ही मैं समझ गया के उसके पास टिकट नहीं है ये खड़ा हो कर जाएगा , मैंने तुरंत उसे अपने पास बुलवाया और बैठा लिया थोड़ी देर बात चीत में पता चला के वो सॉफ्टवेयर इंजिनियर है और दिल्ली नै नौकरी के इंटरव्यू के लिए जा रहा है |

मुझे मेरे मतलब का इंसान रेल में टकर गया था सो मेरे बहुत सारे सवालों के हल मिल जाने थे , खैर उसी रात मुझे सबसे पहली बार PHP कोडिंग भाषा का पता चला तब उसने बताया था के यदि आज अगर किसी को यह PHP कोडिंग की भाषा आती हो तो पूरी दुनिया में उसके लिए मौके ही मौके हैं | मैंने उससे पुछा क्या उसे आती है उसने बताया थोड़ी थोड़ी | मैं सोच रहा था के मेरा अगला करियर गाँवों देहातों में बीतने वाला है और ये छोकरा अमरीका की सिलिकॉन वैली जैसी जगहों में मौज करेगा |

रात तीन बजे तक हम बातें करते रहे एक ही सीट पर सो गए , सुबह दौसा में ट्रेन पहुंची तो हलचल हुई और हमारी नींद खुली , मैंने भाई से कहा के अलवर में कचौड़ियाँ मिलेंगी तब तक रनवे तैयार कर लो | अलवर में हमने कचौड़ियाँ फायर कर दी और फिर गुडगाँव तक कंप्यूटर साइंस का एक और मजेदार सेशन चला | गुडगाँव में बिना स्टोपेज के ट्रेन रुकी तो श्रीमान अमित गुप्ता ट्रेन से जल्दी से कूदे और बोले मुझे तो यहीं आना था और अच्छा हुआ के ट्रेन यहाँ रुक गयी | मैं जल्दी में न नंबर ले पाया आर न कोई डिटेल |

खैर ट्रेन चली तो उस समय कुछ लोग ट्रेन में चढ़े तो उन्होंने बताया के अमरीका में बहुत बड़ा आतंकवादी हमला हुआ है और न्यू यॉर्क में हवाई जहाज से बम्ब बरसाए गए हैं | मैंने तब तक डिस्कवरी चैनल देख देख कर अमरीका का जितना अंदाजा लिया हुआ था , के हिसाब से मुझे यह सोचने में वक़्त लगा के कौन माई का लाल होगा जो अमरीका पे बम्ब गेर गया | मुझे अमरीका के भूगोल का भी अंदाजा था के अमरीका पे बम्ब गेरनिया आया कहाँ से होगा |

ट्रेन जैसे ही दिल्ली कैंट रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो सुरक्षा इंतजाम बहुत तगड़े मिले , मुझे सच में फ़िक्र हुआ | मैंने तुरंत रोहतक की ओर रुख किया ऑटो पकड़ कर पीरागढ़ी पहुंचा तो जबरदस्त भीड़ मिली , मुझे एक जीप मिली तो मैं मौके की नजाकत समझ कर लटक गया | बैग बहुत भारी था लेकिन बहादुरगढ़ में सबको अंदर जगह मिल गयी , सभी सवारियों में अलिखित समझौता था और सभी सहमे हुए थे , बात किसी को नहीं पता थी , मैंने बहादुरगढ़ की एक सवारी को पर्ची पर अपने घर का नंबर लिख कर दिया और निवेदन किया के मेरे घर फोन कर देना और कह देना के मैं बहादुरगढ़ से जीप में रोहतक की ओर आ रहा हूँ |

दिल्ली बाए पास पहुँचा तो पिताजी सकूटर लिए तैयार खड़े थे , घर तक कोई बात नहीं हुई , घर जा कर जब टेलीविज़न चलाया जो , आतांक का जो नज़ारा देखा तो बस देखते ही रह गए | दिमाग के फ्यूज उड़ गये थे | मुझे बार बार अमित गुप्ता की याद आ रही थी के वो अमरीका के लिए इंटरव्यू देने जा रहा था | अब अमरीका क्या करेगा | तब ये प्राइवेट चैनल नए नए शुरू हुए थे , बाजारू भाषा और शैली का प्रयोग नया था , तब हमारी उत्सुकता भी नई नई थी | 9/11 ने मेरे दिमाग पर बहुत गहरा प्रभाव किया और मैं अन्तेर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों की ओर उन्मुख हुआ |

फील्डवर्क में अक्सर लोगों के बीच में जब ये जिक्र छिड जाता तो मैं अपने तर्कों और जानकारियों से अपनी जगह बना लेता था | अमरीका जाने का क्रेज मेरा बिलकुल समाप्त हो गया था क्यूंकि अविजित किले के जैसे मैं जिस अमरीका को मैं समझता था , 9/11 को ट्विन टावर्स के ध्वस्त होने के साथ साथ मेरा अमरीका जाने का सपना भी ध्वस्त हो गया था , नहीं तो कहीं न कहीं मेरे अवचेतन में मन में यह बात थी कि अमरीका दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह है |

आज सोलह साल हो गए , जरूर अमित गुप्ता अपने करियर के मुकाम में बहुत ऊँचे निकल गया होगा | आज PHP में मैं भी हाथ पैर चला लेता हूँ , मेरे सभी पोर्टल्स की कोडिंग PHP में हुई है | मैंने लाखो रुपये PHP प्रोफेशनल्स को दिए हैं | मुझे अपने करियर और काम से बहुत संतोष है | कई बार ऐसी घटनाएँ अपरोक्ष रूप से पूरी दुनिया को प्रभावित करती हैं | श्रीमान अमित गुप्ता को कभी न कभी खोज लूँगा और अपने अनेक सवालों को उनसे पूछुंगा जो मैंने पिछले सोलह सालों में एकत्र किये हुए हैं |