क्राइसिस मैनेजमेंट की निन्जा तकनीक

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वैसे तो क्राइसिस मैनेजमेंट का कोई कोर्स या पाठ्यक्रम नहीं होता है यह सभी को जीवन में अपने अनुभवों से सीखना पड़ता है। मैंने यह तकनीक पठानिया अंकल और आंटी जी से सीखी थी। यह साल 2004 था जब मेरे छोटे भाई दिनेश ने दिल्ली में इंद्रलोक मेट्रोस्टेशन के नज़दीक एक दम वाकिंग डिस्टेंस पर एक रूम किराए पर ले रखा था जो फर्स्ट फ्लोर पर था। मकान मालकिन पठानकोट के पठानिया थे और आंटी घर की ऑफिसर इन कमांड थी और ग्राउंड फ्लोर पर पठानिया परिवार रहता था और ऊपर दो तीन कमरों में करियर बनाने की फिराक में इधर उधर से आये हुए कुछ लड़के।

आंटी बोलती बहुत थी और टीवी, खाने पीने की खूब शौकीन थी। अंकल आंटी के सारी बातें मानते थे और दो लड़के भी थे जो बीस बाईस की उम्र के थे। मैं कभी कभी इधर उधर से आता था तो दिल्ली में रात यही रुक जाया करता था। मैं भी ठीक ठाक बातूनी और पूरा चबल था और पठानिया परिवार भी बोलने चालने वाला परिवार था। एवरेज से लोग थे जिन्होंने पूरी उम्र दिल्ली में खट पट के बस एक मकान डाल लिया था और थोड़ी बहुत कोई सेविंग होग़ी तो पता नही।

एक दिन की बात है कि मैं आंटी के घर पहुंचा और मेरा भाई दिनेश भी साथ था और घर के बाहर दो पुलिस वाले बैठे थे और ब्रेड पकौड़े खा रहे थे। अंकल जी और आंटी जी भी उन्ही के साथ बैठे थे और बेटा किचेन से पकौड़े ला रहा था और बड़े खुशनुमा माहौल में बातें हो रही थी।

हमें भी वहीं बैठा लिया गया और फिर हमने अपनी बातें बीच मे घसो दी। पुलिस वाले भी चाय के दो सेट लगा कर चले गए और हम भी ऊपर आ गए। नीचे रौनक मेला चलता रहा। देर रात दूसरे किरायेदार ने मुझे बताया कि आज आंटी के घर दिन दहाड़े चोरी हो गयी है जब सारे लोग घर मे मौजूद थे।

मेरे मन मे सवाल आया कैसे? और मैँ सीधा नीचे चला गया और अंकल जी से पूछा। तो उनके ने बताया कि घर की अलमारी का एक ताला खराब था तो हमने सिकलीगर को बुलवा लिया उसने ना जाने हमे कैसे चक्कर ने डाला और मौका देख कर अंदर का रखा सारा सामान निकाल लिया और ताला फिर से जड़ दिया और बोला कि मेरा कोई औजार रह गया है मैं ले आता हूँ।

जब वो दो घण्टे नही आया तो शक हुआ क्योंकि वो अपना सामान भी यहां छोड़ गया था। उसी के समान से ताला तोड़ा तो सब समान साफ था। आंटी जानती थी कि क्लेश डाला तो अंकल जी हाथ से चले जायेंगे तो आंटी ने माहौल ऐसा बना दिया कि जैसे कुछ हुआ ही नही।

कई दिनों बाद तक जब भी मैं दिल्ली जाता था तो अंकल आंटी के पास एक चाय लगाने जरूर चला जाता था और जब मुझे पूरी बात पता चली तो जीवन भर की कमाई और सारा गोल्ड एक साथ चला गया था लेकिन आंटी ने समझदारी से बहुत कुछ बचा लिया था। मेरे जीवन मे जब भी कोई क्राइसिस होता है तो मैं पठानिया अंकल आंटी को याद कर लेता हूँ तो हरेक क्राइसिस हल्का नज़र आता है।

इस दुनिया का सारा सामान सांग सौदा धन माया हमारे खिलौने हैं जो हमने खेल खाल के बगा देने हैं। जीवन मे शांति, प्रेम प्यार भाईचारा ही असली धन है जो हरदम जीव के साथ रहेगा। जब कभी भी मैं अपनी नालायकी से क्राइसिस ऑर्बिट में घुस जाता हूँ तो तुरंत पठानिया अंकल आंटी का चेहरा मेरे मन मे उभर आता है और मैं एक सेकंड में ही बाहर निकल आता हूँ ।