श्राद्ध करने की सहज विधि

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कृष्ण भागवत किंकर

पितृपक्ष, महालय या पार्वण पक्ष या श्राद्ध पक्ष 20 सितम्बर से आरम्भ होने वाला है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हुए उन्हें धन्यवाद पूर्वक स्मरण करने के साथ जीवन में शांति , सुख, समृद्धि, वृद्धि, निर्विघ्नता आदि के लिए श्राद्ध, पितृ तर्पण,पिण्डदान, गोदान, आदि करने का विधान सनातनी परम्परा है।

लुटेरे-आक्रान्ताओं के आक्रमणों से उत्पन्न हजार वर्षों की अव्यवस्था के कारण अधिकांश सनातनी हिंदुओं में श्राद्ध के ठीक-ठीक विधानों की जानकारी न्यूनतम है साथ में प्रायः लोकाचार, क्षेत्रीय कर्मकांडों में उलझी हुई जटिल प्रक्रिया शेष है या प्रपंच की शिकार मात्र है। ऐसे में ठीक-ठाक तरीके से और सभी सनातनी हिंदुओं द्वारा सहजता से श्राद्ध कर सकने योग्य एक विधि आपको सौंपने का साहस कर रहा हूँ, जिन्हें ठीक लगे वे स्वीकार लें, जिन्हें न लगे वे स्वतंत्र हैं ही।

श्राद्ध की सहज विधि जो मुझे समझ आई है, वह विधि है

“भगवान सूर्य नारायण के सहस्त्र नाम में से एक नाम है अर्यमा” और पितृलोक के अधिपति और पितरों में सर्व-पूजनीय हैं अर्यमा। अर्यमा का अर्थ है प्रकाश। अब ध्यान देने की बात यह है कि सभी पुराणों के साथ साथ आधुनिक विज्ञान की सृष्टि उत्पत्ति के सिद्धांत (Big bang theory) का मत है कि सूर्य जो एक अति विशाल पिण्ड था, में विखंडन हुआ और पृथ्वी इत्यादि ग्रहों की उत्पत्ति हुई।

शनै: शनै: पृथ्वी पर जीवन उत्पन्न हुआ और क्रमिक विकास के बाद मनुष्य की रचना हुई।अतः सिद्ध है कि अर्यमा अर्थात सूर्य नारायण ही हम सभी के आदि श्रेष्ठ पूर्वज हैं। तो प्रकाश की ओर अर्थात ज्ञान की ओर यात्रा करते हुए अपने वास्तविक स्वरूप को जान लेना ही वास्तविक पिण्डदान है।”

अब जो पितृदोष से पीड़ित हैं, वे सूर्यनारायण की सेवा करें, आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करें, पितृपक्ष में प्रातःकाल लालिमायुक्त सूर्यनारायण के सन्मुख अथवा गोशाला में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें अथवा पुरुषसूक्त का पाठ करें। ये सब भी न हो सके तो मात्र बारह बार ‘अर्यमाय नमः’ मंत्र का अथवा द्वादश आदित्यों का नाम लेकर सूर्यनारायण को एक लोटा/अर्घ से जल अर्पण कर दें। सब प्रकार से समृद्धि प्राप्त होने पर किसी योग्य, परम्परा से दीक्षित ब्राह्मण अथवा अपने गुरूदेव के व्यासत्व में श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का यज्ञ सम्पादित करें कल्याण होगा।