प्रोफेसर राम सिंघ

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प्रोफ़ेसर राम सिंघ जी राजपुरा टाउन से सात किलोमीटर दूर अपने फ़ार्म हाउस पर रह कर जीवन का आनंद लेते हैं। मेरे अजीज सीनियर साथी श्रीमान शीशपाल जी हरदु निवासी ग्राम कुमथल नज़दीक ऐलनाबाद वाले मुझे इनसे मिलाने के लिए 22 जुलाई 2022 को इनके पास लेकर गये और वहां इनके फ़ार्म पर लगभग छह घंटे बिताने का अवसर मिला और गपशप के लम्बे दौर के दौरान प्रोफेसर साहब ने अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :

भारत और विश्व घूमने की प्रेरणा

राम सिंघ जी सन 1968 में कालेज में पढ़ते थे और पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट की ओर से पांच एंबेसियों का एक टूर बनाया गया और स्टूडेंट्स का एक दल स्विट्जरलैंड की एंबेसी में पहुंच गया। वहां कल्चरल सेक्रेटरी की ड्यूटी लगी बच्चों के सवालों का जवाब देने की। पंजाब के बच्चों की शुरू से दुनिया के देशों में जाने की ललक रहती ही थी।

कल्चरल सेक्रेटरी से आगे बैठने वाले होशियार बच्चों ने एक ही स्वर में सवाल पूछा कि स्विट्जरलैंड कैसे जाया जा सकता है। सेक्रेट्री महोदय ने वापिस सवाल किया कि आपने स्विट्जरलैंड जाना क्यों है?

बालकों ने जवाब दिया कि हम आपका देश देखना चाहते हैं वहां के लोगों से मिलना चाहते हैं वहां के लोग कैसे रहते हैं वहां लोगों का रहन सहन खान पान कैसा है? सेक्रेट्री महोदय ने सबके सवाल सुनकर वापिस सभी से एक ही सवाल पूछा क्या आपने अपना देश देख लिया है?

सारे बच्चों को सांप सूंघ गया क्योंकि सारे बच्चे जीवन में पहली बार ही दिल्ली आए थे?
इन्हीं बच्चों के साथ आए राम सिंघ ने अपने पल्ले बात बांध ली और जब नौकरी पेशे में आए तो पहले पूरा देश घूमा और फिर रिटायरमेंट के बाद अपने अध्यन के लिए दुनिया के महत्वपूर्ण देश घूमे।

यूनान तो वे सिर्फ सकुरात प्लेटो और अरस्तू के पदचिन्हों को ढूंढने के लिए गए और यूनान की सभ्यता को एक्सप्लोर किया।

अब लगभग छह महीने बाहर दुनिया में घूमते हैं और आधा समय अपने जद्दी पिंड खेड़ी गडियां जो राजपुरा से सात किलोमीटर दूर हैं पर अपने फार्म हाउस पर व्यतीत करते हैं।
यहां अपने फार्म पर एक बड़ी लाइब्रेरी भी बना रहे हैं।

प्रोफेसर राम सिंह जी की अनूठी लाईब्रेरी

किताबों के बेहद शौकीन रहे प्रोफेसर राम सिंह जी के हाथ एक बार ओशो की एक पुस्तक लगी जिसमें उन सौ किताबों का वृतांत था जो ओशो की सबसे मन पसंद किताबें थी और जिन्हे पढ़ कर ओशो को अपना नजरिया विकसित करने में कंट्रीब्यूट किया था।

हरेक पुस्तक पर चार पांच पेजों की समरी थी जिसमें उस किताब की महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख था।
प्रोफेसर राम सिंघ जी ने बताया कि उस किताब को पढ़ते वक्त उनके मन में यही क्यूरोसिटी रहती थी कि अगली कौन सी किताब का जिक्र होगा।

और जब वो किताब खत्म हुई तो उनके मन में एक बहुत गहरी शांति और रोमांच का भाव उत्पन्न हुआ क्योंकि उन सौ किताबों जिनका जिक्र ओशो ने अपनी पुस्तक में किया था उनमें से साठ पुस्तकें पहले से ही प्रोफ़ेसर राम सिंह जी की निजी लाईब्रेरी पहले से मौजूद थी।

अब क्यूरोसिटी के कीड़े अपनी एडियां ठा कर खड़े हो गए हैं कि प्रोफ़ेसर राम सिंह जी की लाइब्रेरी जो कालका में उनके घर पर स्थित है वहां जितनी जल्दी जाया जाए और खोज बीन की जाए।
इस बाबत प्रोफेसर साहब जी से निवेदन कर दिया गया है।

जब प्रोफ़ेसर राम सिंघ जी बुक शॉप में लॉक हो गये

प्रोफेसर राम सिंघ जी अपने अनुभव के बारे में बताते हुए

पंजाब यूनिवर्सिटी में आत्मा राम एंड संस पब्लिशर की बुक शॉप में किताबों को देखते देखते इतने खो गये और कब शोरूम का स्टाफ लंच करने शटर डाउन करके चला गया इन्हें पता ही नहीं चला और जब उन्होंने शटर खोला तो इन्हें अंदर बैठा देख कर चोर समझ कर डर गये और शटर बंद करके भाग गये।

यूनिवर्सल बुकशॉप सेक्टर 17 चंडीगढ़

श्रीमान एम एस रंधावा ही चंडीगढ़ को स्थापित करने वाले महान लोगों में से एक थे जब सेक्टर 17 की मार्किट की प्लानिंग हुई तो उन्होंने मुख्य स्थान पर एक बड़ी सी दूकान किताबों की दुकान बनाये जाने के लिए रिजर्व कर दी। लेकिन अखबार में दो तीन बार विज्ञापन देने के बावजूद वहां किताबों की दूकान खोलने के लिए कोई राजी नहीं हुआ।

रंधावा जी ने जब मालूमात की तो उन्हें पता चला कि दुकानदार यह सोच रहे हैं कि यहाँ बुक्स खरीदने कौन आएगा इसी लिए कोई भी यहाँ किताबों की दुकान खोलने का इच्छुक नहीं है फिर एम एस रंधावा जी ने होशियारपुर के एक पुराने लेकिन छोटे दुकानदार को मोटिवेट किया कि आप चंडीगढ़ में आ कर दुकान खोलें हम आपको बेहद मामूली सी कीमत पर एक बड़ी सी दूकान अलाट कर देंगे। इस तरह चंडीगढ़ क सेक्टर 17 की मार्किट में यूनिवर्सल बुक शॉप खुली और वो ऐसी चली ऐसी चली की उसने चंडीगढ़ में अपनी पहचान कायम की और चंडीगढ़ वासियों की बौद्धिक ताकत में बहुत कंट्रीब्यूट किया।

ईश्वरचंद नंदा प्रिंसिपल गवर्नमेंट कॉलेज रोहतक

ईश्वर चंद नंदा प्रिंसिपल गवर्नमेंट कॉलेज रोहतक का अनुभव