एक बार की बात है एक छोरा बाज़ार मैं गया और वो हलवाई की दूकान के आगे जा कै खड़ा हो गया उड़े बढ़िया गरमा गर्म जलेबियाँ उतरण लाग रही थी जेब में एक भी रापिया धेला किमे था नहीं उसने सोची छोड्ड ना यार पहल्यां तू जलेबियाँ समार ले फेर देखांगे
अर एक किलो जलेबी तुलवा ली अर खा गया चालन लाग्या तो हलवाई बोल्या ओ भाई ल्या रै जलेबियाँ के रपिये दे वो छोरा बोल्या लाला जी रपिये तो कोन्या , हलवाई कै उठ गया छो गेर कै नीचे तसल्ली तै ओसन(पीट) दिया
बस वो छोरा झाड झूड कै लत्ते(cloth) फेर खड्या हो गया और हलवाई उसने देख कै बोल्या जा भाज ज्या इब आड़े क्यूँ खड्या सै ?
वो छोरा लाला जी तै बोल्या ल्या फेर लाला जी इस ऐ रेट मै एक किलो और तोल दे