चमत्कारी प्रतिभा के धनी लाला जगदीश जैन जी नई अनाज मंडी रोहतक वाले

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लाला जगदीश जैन जी के साथ उनके ठईये पर नई अनाज मंडी रोहतक में, फोटो क्रेडिट : पांडू (लाला जी का छोटा बेटा)

ये लाला जगदीश जैन जी हैं।

रोहतक में नई अनाज मंडी में इनका बारदाने का खानदानी काम है।

साल 1998 में जब हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में एम. एस. सी. का छात्र था तो उन दिनों आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यक्रम के में रोहतक में लाला जगदीश जैन जी से परिचय हो गया था ।

ये और इनका छोटा बेटा पांडु रात रात भर सडकों मोहल्लों में पोस्टर लगाते थे।

साल 2000 मैं पढाई पूरी करके इंडियन आर्गेनिक फ़ूड नई दिल्ली में नौकरी करने लगा था। लेकिन रविवार को कभी कभी लाला जी के ठिकाने पर चला जाता था। इनके ठिकाने पर (अनाज मंडी में इनकी दूकान के सामने) एक पीपल का पेड़ है जिस पर कोई अजीब सा रोग लग हुआ था।

उस रोग को हटाने का सामाजिक टेंडर मैंने ले लिया और तमाम जड़ीबूटियां घोल पीट कर मैने एक दवा बनायीं (सन 2001 में इंटरनेट से पढ़ कर)। पेड़ की हालत में सुधार हुआ। पत्तों से जो काला रस टपकता था वो बंद हो गया था।

आज भी वो पेड़ खड़ा था और विशाल वृक्ष में बदल चुका है।

लाला जगदीश जैन बड़े गजब के ऊर्जावान व्यक्ति हैं, बात करने में स्पीड इतनी है कि नया आदमी आसानी से पकड़ ही नहीं पाता।

इनकी एक मजदूरों की टीम है जो बारदाने को सिल सील कर साइज के अनुसार लगाते रहते हैं। इस टीम के कमांडर आज भी वही लोग हैं जिनको मैं 17 साल पहले देखता था।

ये सभी लोग पट्टी करने दवा लगाने में और फर्स्ट एड करने में एक दम एक्सपर्ट हैं। जब मैं शुरू शुरू में इनके ठीये पर जाना शुरू हुआ तो मैंने देखा कुत्ते, खागड़, आवारा गाय जिस किसी को भी चोट लग जाये वो लाला जी की दूकान के आसपास आकार खड़ा हो जाता है और इनकी दूकान पर काम करने वाला मजदूर सीधे काम छोड़ कर उसकी सेवा पानी में जुट जाता है।

इनके ठीये के आसपास सभी पेड़ो के नीचे पानी भर कर रखने की जिम्मेवारी इनके एक स्टाफ की होती है।आज भी यदि इनके पास कहीं से फोन आ जाता है कि फलां जगह पर खागड़ घायल है या गाय बीमार है, लाला जी स्वयं या इनका कोई स्टाफ तुरंत पहुंच जाता है।

वर्षों पहले की बात है जब मैं इनसे नया नया परिचित हुआ था तो मैंने इनका जस्बा देख कर इनसे पुछा था कि लाला जी आप अपनी संस्था क्यों नहीं बनाते और सरकार से ग्रांट क्यों नहीं लेते।

तब जनांब ने हस्ते हँसते जवाब दिया था, भाई कमल जीत हमारा तो खानदानी नुक्ता है :

अपना हुक्का अपनी मरोड़ पिया पुया ठीक सै नहीं दिया फोड़।

रोहतक का हूँ इसीलिये जीवन में मरोड़ के महत्व को अच्छे से समझता हूँ। तभी से मैंने भी ये सूत्र अपनाया हुआ है कसम से इसको दिमाग में फिट करने के बाद फीलगुड रहता है, दूसरे की थाली वाली टेंशन समाप्त हो जाती है।

आज भी लाला जी के ठीये के सामने मार्केटिंग बोर्ड की एक खाली जगह है जहाँ मार्केटिंग बोर्ड वालों ने नीम के पेड़ लगवा रख़े हैं।

उन पेड़ों के नीचे लकड़ी के बड़े बड़े पोर्टेबल खोर रखे हैं जहाँ शाम को लगभग 200 गाय, खागड़ आ कर चारा प्राप्त करते हैं।

साल 2002 में जाने का एक बार अवसर मिला था तो मैंने देखा था एक कमरे में सिर्फ किताबे थी, नैतिक शिक्षा, कहानियो की। एक बात और इनके मुहं से गाली भी अच्छी लगती है पता नहीं कैसे।

जीवन सूत्र:

अपना हुक्का अपनी मरोङ पिया पिया ठीक सै नही दिया फोड़।