गौपालन गौसंरक्षण गौसंवर्धन गौशालाएं और कानूनी अडचनें और संभावनाएं

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महक सिंह तरार और कमल जीत

भूमिका

गाय सनातन की आर्थिक धुरी है और धर्म के मूल में जो अर्थ होता है वह असल में गाय ही होती है। चूंकि गाय सनातन इकनोमिक सिस्टम की करंसी है इसी लिए जो हालात आज गाय की हो रखी है वही हालात हमारी करंसी अरतार्थ मुद्रा के हो रखे हैं मतलब कोई पूछता ही नही है हमारे ऋषि मुनियों ने बड़ी शोध करके गाय को पहचाना और फिर गाय को विकसित किया।

kamal jeet at inder krishan gaudham ghraunda

गाय एक ऐसा जीव है जो जीरो डिग्री तापमान से लेकर पैंतालिस पचास डिग्री तापमान तक बड़े आराम से बिना किसी ख़ास सपोर्ट सिस्टम के रह लेती है और रूखा सूखा खा कर उसे दूध के रूप में बदल कर हमें दे देती है वो दूध यदि दो लीटर है तो भी अमृत है और उसे वैज्ञानिक तरीके से शोध करके बढाया भी जा सकता है इसके बारे में हम आगे बातचीत भी करेंगे।

गाय रुपी करंसी सैदेव स्थिर रहती है। इसका अवमूल्यन नही हो सकता है। यह अपनी वैल्यू अपने आप बढाती रहती है जितनी गायों की संख्या बढ़ेगी करंसी का मान अपने आप बढ़ जायेगा गायों की संख्या बढ़ने से दूध घी मक्खन गौमूत्र गोबर की उपलब्धता बढती है जिससे खुशहाली आती है।

पुराने जमाने में ऋषि मुनियों के गुरुकुलों में राजा लोग गायों का दान किया करते थे जिससे गुरुकुल में खुशहाली और समृद्धि बढती थी गुरुकुल में गायों और छात्रों की सीटों का एक अनुपात हुआ करता था गायों की संख्या बढ़ने के साथ साथ गुरुकुलों में नये छात्रों की भर्ती होने की संभावनाएं बन जाती थी और गुरुकुल की प्रतिष्ठा भी बढ़ जाया करती थी।

खुले चरागाहों में ब्रह्मचारी गाय चराया करते थे जिससे वे गौ के बारे में तो सीखते ही थे और उन्हें अन्य अनेक व्यवाहरिक बातों का ज्ञान हो जाया करता था जो जीवन भर उन्हें स्वतंत्र रहने में काम आया करता था।

मामला गड़बड कैसे हुआ

भारत पर विदेशी हमलों के साथ साथ बाहर की संस्कृतियों के लोगों के साथ जब हमारा सम्पर्क हुआ तो सनातन के दुश्मनों ने यह समझ लिया कि सनातन संस्कृति का आधार ही गौ है इसीलिए उन्होंने इसे अपने मुख्य टार्गेट पर रखा।

गौपालन का मुख्य आधार चारागाहें और बड़े बड़े औरण क्षेत्र हैं अब आपके मन में सवाल उठेगा कि औरण क्षेत्र क्या होता है। पुराने समयों में राजा महारजा लोग मंदिरों के आसपास एक बड़ी भूमि जिसका विस्तार वर्ग किलोमीटरों में हुआ करता था को खाली छोड़ दिया करते थे जिसमें प्राकृतिक रूप से वनस्पतियाँ और घास उग जाया करते थे जिसमें गौ निडर भाव से चरती थी।

पहली गड़बड़

ब्यूरोक्रेटिक सरकारें जो पश्चिम देशों के बनाये हुए कलोनियल कानूनों की रखवाली हैं और पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था को प्रमोट करती हैं को यह अच्छे से पता था कि यदि तुम्हें अपना सिक्का चलाना है तो गाय आधारित इकोनोमी को लगातार कमजोर करना पड़ेगा और उसका पहला स्टेप है चारागाहों को नष्ट किया जाए और लोगों को गाय को घर में बाँध कर रखने के लिए प्रेरित किया जाए इस प्रेरणा को आप सरल भाषा में मजबूरी भी कह सकते हैं।

गाय खूंटे पर बाँध कर रखने से कुत्ता बन जाती है सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि गाय स्ट्रेस में आ जाती है क्यूंकि घूमने फिरने वाले स्वछंद प्राणी को यदि खूंटे से बाँध कर रखा जाए तो दिमाग खराब होना लाजिमी है। गाय को चलने फिरने से उसका पाचन तंत्र और प्रजनन तंत्र विकसित होता रहता है और गाय के जीवन को कोई खतरा नही होता है उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत एकदम दुरुस्त रहती है।

चरागाहों की जमीने पंचायतों को दे दी गयी जहाँ उन्होंने ठेके पर दे कर वहां कृषि कार्य करने शुरू कर दिए और गायें के बछड़ों की जगह ट्रेक्टर प्रमोट किये गये जिन्हें चलाने के लिए डीजल भी विदेशों से मंगवाना पड़ता है। उधर गाय का महत्वपूर्ण पक्ष बैल अब बेकार कर दिया गया जो अब आवारा की श्रेणी में डाल कर अपने ही घर में बेगाना कर दिया गया है।

दूसरी गड़बड़

सनातन संस्कृति के दुश्मनों ने हमारे देश में गौवध करने के हत्थे खोले जिन्हें आज स्लाटर हाउस कहा जाता है जिनमें प्रतिदिन हज़ारों गायें बैल बछड़े काटे जा रहे हैं और उनका मांस सनातन के दुश्मनों को परोसा जा रहा है और उसके बदले कागजी मुद्रा प्राप्त करके अपने ऐशो आराम में भोग विलास में संविधान के रिश्तेदार खर्च करने में जुटे हैं

तीसरी गडबड

ब्यूरोक्रेटिक व्यवस्था को यह पता था कि उसे धन पर पूर्ण कब्ज़ा चाहिए ताकि उसकी कागजी इकोनोमी उभरे और देश की जनता बावली होकर इन कागजी मुद्राओं के पीछे पागल कुत्ते की तरह लपलपाती फिरे। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों जहाँ गौपालन की व्यवस्था अच्छी खासी बनी हुई थी को तबाह करना बेहद जरूरी था। इसके लिए ऐसे एक सिस्टम की आवश्यकता थी जिसमें डब्बे मे पाउडर शाऊडर आदि घोल पीट कर जो भी सफ़ेद द्रव बने उसे दूध की संज्ञा देकर दूध के बराबर खड़ा कर दिया जाए और किसानों के नाम पर पूरा व्यवसाय शहरी इकॉनमी के कब्जे कण्ट्रोल में दे दिया जाए।इससे अनेकों फायदे होंगे नम्बर एक दूध की पैकटों में बिक्री से टैक्स मिलेगा नम्बर दो गाँव में गौपालकों का दूध नही बिकेगा क्यूंकि रेट भी पूरा नही मिलेगा ऐसे में लोग गौपालन छोड़ देंगे और विदेशी नस्ल की गायों की ओर मुड़ेंगे जिनके पालन में फीड दवाइयां और इंजेक्शन के माध्यम से इकनोमिक ग्रोथ मिलेगी अंत में लोग गायें खुली छोड़ देंगे और फिर उन्हें कटवा कर विदेशी कागजी मुद्रा का इंतजाम किया जा सकेगा।

चौथी गडबड

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद सन 1858 में भारत सीधे ब्रिटिश संसद के अधीन आ गया और भारत में वायसराय की नियुक्ति हो गयी और भारत में शासन चलाने के लिए कानून बनाये जाने लगे सन 1860 में एक कानून आया जिसे सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट कहा गया।

इसे लाने के पीछे मूल उद्देश्य यह था कि भारत में लोगों की ऊर्जा को दिशा देने के लिए एक व्यवस्था बने और जिसके तहत सामाजिक कार्य आदि कराए जा सकें उस दौर में भारत का आम आदमी बहुत ही दयनीय स्थिति में था क्यूंकि अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के कारण टैक्सो का भयंकर बोझ था। सिर्फ राजा महाराजा लोगों के पास ही धन संपदा हुआ करती थी जिसे वे समाजिक कार्यों जैसे शिक्षा और धर्म के प्रचार प्रसार आदि पर खर्च करने की स्थिति में हुआ करते थे।

इसी लिए कानून ऐसा बनाया गया कि सोसायटी यानी संस्था के सदस्य अपनी संस्था में योगदान देंगे लेकिन उससे कोई लाभ नही लेंगे मतलब गाय तो पालेंगे उसका दूध नही पियेंगे यह सब राजा महाराजा लोगों के लिए संभव तो था लेकिन आम आदमी संस्था कैसे चलाए।

कानून तो सभी पर बराबर लागू था। समय बीतने के साथ देश आजाद भी हुआ और आम आदमी भी संस्थाएं आदि बनाने लग गये जिसका नतीजा क्या हुआ पूरा समाज कानूनी रूप में चोर बना दिया गया।

आज जितने भी प्राइवेट स्कूल आदि चल रहे हैं वो सभी एजुकेशन सोसायटी में चलते हैं उसके नियम कानूनों के मुताबिक संस्था के सदस्य जो स्कूल खोलते हैं उसमें से एक पैसे का भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ नही ले सकते हैं अब सोच कर बताओ क्या यह संभव है।

नही है भाई व्यक्ति को जीने के लिए सेटिंग करनी पडती है और यही सब व्यवस्था चाहती है कि सब भीख मांगते रहें और चोर बने रहे।

दीगर गौशालाएं भी इसी सोसायटी रजिस्ट्रेशन या ट्रस्ट एक्ट में पंजीकृत हैं जिसमें बस एक ही सहारा है दैट इज दान यानी के डोनेशन।

इस लीगल स्ट्रक्चर के लफड़े

सोसायटी एक्ट जिसके तहत गौशाला की स्थापना की जाती है उसे एक और अन्य एक्ट के दो सेक्शनों का सहारा मिलता है वो हैं इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 12AA और 80 G इनका अर्थ एक तो वित्त वर्ष के अंत पर जो धन बचेगा उसपर 30% टैक्स नही देना पड़ेगा दूसरा यदि कोई संस्था को दान आदि देगा तो उसे इनकम टैक्स में कुछ रिबेट मिल जाएगी।

यहाँ तक तो बात ठीक है लेकिन दिक्कत जब आती है यदि गाय का दूध ,घी,मूत्र, वर्मीकम्पोस्ट , दही, खीस या एनी कोई वैल्यू एडिड उत्पाद बना कर बेचने की बात की जाए तो इनकम टैक्स विभाग का चैरिटेबल कमिश्नर संस्था को मिल रहे 12 AA और 80 G के लाभ को समाप्त करने की धमकी देता है जिससे संस्था पर 30% टैक्स देने का खतरा बन जाता है।

इससे हो क्या रहा है ?

गौशालाएं इस समय एक सरकटी लाश की तराह वेंटिलेटर पर पड़ी है और सपोर्ट सिस्टम का बिल आ रहा है इस सिस्टम को चलाने वाले कुछ न कुछ घाट बाध करके जो जहाँ से कुछ मिल जाता है बस सिस्टम को चला रहे हैं। अभी देश के नागरिकों के मन में संस्तान के संस्कार हैं और उनके मन में गौ के प्रति स्नेह है देश के किसान आज भी गौशालाओं के लिए तूड़ी और हरा चारा भेजते हैं देश के उद्योगपति भी गौ के लिए खर्चा करते रहते हैं। बस कैसे भी करके सिस्टम धक रहा है और बस धीरे धीरे अंत की ओर अग्रसर है ना जाने किस दिन पटाका बोल जाए।

अपने पास रस्ता क्या है

मुझे ऐसा महसूस होता है कि हमें जो व्यस्था बनी हुई है उसे छेड़े बैगैर गौरक्षा गौसंवर्धन गौसंरक्षण गौ सेवा के एक नये युग की शुरुआत करनी पड़ेगी जिसके लिए जो लीगल स्ट्रक्चर मुझे आसान लगता है वो है एल.एल.पी. यानि के लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप

यह एक नया कांसेप्ट है जिसे कंपनीज एक्ट के तहत बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है इसे बनाना और बंद करना बेहद आसान है यह एक अग्रीमेंट के आधार पर बनाई जा सकती है और इसका पैन नम्बर . जी.एस.टी. नम्बर FSSAI नम्बर , अन्य जरूरी लाइसेंस लेना आदि बहुत आसान होते हैं इसमें पूँजी खडी की जासकती है।

पूँजी की आवश्यकता और इसका महत्व

अपने देश में अपनी पिटाई बीएस पूँजी करके ही हो रही है, पूँजी की ताकत या तो सरकार यानी व्यवस्था के पास है या फिर बैंकों के पास इसीलिए हमारे सपने और प्रोजेक्ट्स कभी उड़ान नही ले पाते हैं और बस घिसड़ घिसड़ कर खतम हो जाते हैं।

यह बात मेरे से स्टाम्प पर लिख कर ले लो के गौरक्षा गौसंवर्धन गौसंरक्षण आदि कार्य बिना पूँजी के कभी भी नही हो सकते हैं इसी लिए हमें बड़ी पूँजी निर्माण व्यवस्था की तुरंत अत्यंत घोर आवश्यकता है जिसमें कम से कम एक करोड़ रुपया तो हरदम उपलब्ध हो।

अब यह कैसे खड़ी की जाए

एक एल.एल.पी. बनाने के लिए पहले अच्छा खासा प्रचार प्रसार किया जाए और एक हज़ार गौभक्तों को लाम्बद्द किया जाए उनको यह कहा जाए कि भाई अब गौरक्षा गौसंवर्धन गौसंरक्षण का कार्य नये फॉर्मेट में करने का समय आ चुका है यदि आप जीवन भर मालिक यानी के धनी बनकर गाय से जुड़ना चाहते हैं तो प्रत्येक माह 100 रुपये पूँजी निर्माण और कुछ समय सहयोग इन्वेस्ट करने की कृपा करें।

आजकल पे.टी.एम. और गूगल पे का जमाना है और यह सभी सदस्य शहर के ही बनाने हैं जो कि मालिक और ग्राहक की कैपेसिटी में एल.एल.पी. से जुड़ेंगे सभी लोग हरेक महीने 100 रुपये का योगदान देंगे तो हर महीने एल.एल.पी. की खाते में एक लाख रुपये की पूँजी इन्वेस्ट होगी और एक साल में 12 लाख रुपये जो 8 साल 3 महीनों में एक करोड़ की पूँजी बन जाएगी।

गौशाला में दान देने से धनी का धन समाप्त हो जाता है लेकिन यहाँ उसका धन समाप्त नही होगा अपितु वो एल.एल.पी. का हिस्सेदार होगा जैसे जैसे पूँजी खड़ी होती जाएगी इसमें रोजगार देने का सामर्थ्य भी बनता चला जाएगा और लगाये हुए लोगों की मदद से गौपालन की एक व्यवस्था बनाई जाए जिसके सभी उत्पाद उसके सदस्य पार्टनर्स के बीच में बेचे जाएँ जिससे एल.एल.पी. का व्यापार बढ़ेगा और अधिक रोजगार की संभावनाएं बन जाएँगी।

इसके क्या फायदे होंगे

जो लोग एल.एल.पी. के पार्टनर्स बनेंगे वो क्वालीफाईड लोग होंगे जैसे डॉक्टर वकील इंजिनियर और सरकारी अधिकारी बड़े बड़े कंसलटेंट आदि जो ज्ञान के भण्डार होते हैं और ज्ञान ही ताकत होता है इन सब लोगों का पैसा बड़े ही सेक्योर तरीके से गौरक्षा गौसंवर्धन गौसंरक्षण के काम में लगाया जा सकता है।

स्किल पूल हो जाने से संभावनाओं की बिल्ली थैले से निकल कर बाहर आ जाएगी और गौरक्षा गौसंवर्धन गौसंरक्षण का काम सार्थक दिशा की ओर अग्रसर होगा।

डेली भीख मांगने का काम और दान आदि इक्कठा करने से छुटकारा मिल जाएगा जो लोग वानप्रस्थ आश्रम में रह कर सेवा करना चाहते हैं वो पुराने सोसायटी वाले मॉडल से जुड़कर अनुसंधान और सेवा आदि के कार्य जारी रख सकते हैं।

गौ उत्पादों की वैल्यू चेन को विकसित करने और उसे चलाने और मैनेज करने के लिए असंख्य युवाओं की आवश्यकता देश में पड़ने वाली है जो गाय चराने से लेकर उसके दूध मूत्र और गोबर से वैल्यू एडिड प्रोडक्ट्स बनाने और उनकी मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन के काम में लगेंगे।

सेल्स और मार्केटिंग की चिंता इसीलिए करने की आवश्कता नही है क्यूंकि एल.एल.पी. के मालिक यानी पार्टनर्स के परिवार ही सबसे बड़े ग्राहक होंगे जिनके रेफेरल से एक बड़ा बाज़ार अपने आप चला आयेगा।

उपसंहार

गौ सनातन की धुरी है क्यूंकि इसके जुडी हरेक व्यवस्था बेशक को भोजन की पूर्ती से जुडी ही अथवा रोजगार देती है वो सत्व गुण से युक्त है और विश्व में शांति और भाईचारा कायम रखने में सक्षम है तेजी से बदलते इस आधुनिक युग जहाँ हम टेक्नोलॉजी के आसामन को छूने का प्रयास कर रहे हैं वहीँ हमारे पैर यदि सनातन संस्कृति के धरातल पर नही टिके तो मनुष्य का पागल हो जाना निश्चित है।

हरेक मानव बस्ती बेशक वो अर्बन एस्टेट का सेक्टर हो या इंडस्ट्रियल एरिया उसके केंद्र में एक सामूहिक गौपालन व्यवस्था रहे तो समाज को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखना आसान हो जाएगा।

सॉफ्टवेयर पार्क्स में काम करने वाले युवा यदि एक आध घंटा गाय चरा लेंगे तो उनकी शक्ति और सामर्थ्य में कई गुना की वृद्धि हो जाएगी यह व्यवस्थाएं हम आज तो बना सकते हैं लेकिन यदि एक बार यह गौवंश कट गया तो फिर हम इसे लायेंगे कहाँ से ?

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