शूद्र एक घृणित सम्बोधन कब हुआ किसने किया और कैसे किया क्यों किया ? एक विश्लेषण
त्रिभुवन सिंह ऋग्वेद मे लिखा है ब्राम्हण्म मुखम आसीत शूद्रह अजायत। अर्थात परंब्रम्ह की जिह्वा है ब्रामहण । यानि जो तपस्या (रेसेर्च ) से जो मांनव कल्याण हेतु जो मंत्र खोजे जाते है , उसी को जिह्वा से जगत मे प्रचारित प्रसारित करने वाले को ही ब्रामहण कहते हैं । दूसरी बात उस परम्ब्रंह की उपासना जब कोई करता है तो उसके चरण को ही प्रणाम कर चरणामृत लेता है , उसके मुहं की उपासना नहीं न करता। कौटिल्य ने लिखा – स्वधर्मों शूद्रस्य द्विजस्य सुश्रुषा वार्ताकारकुशीलव कर्मम च ।अर्थात सर्विस सैक्टर , मैनुफेक्चुरिंग ,एंजिनियरिंग, पशुपालन, खनिज दोहन और व्यापार …