माँ लक्ष्मी का रूठना

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Written By : C Bhatt, Haldwani

माँ लक्ष्मी एक सुनार से नाराज हो गईं और जाने से पहले बोलीं, “मैं जा रही हूँ, और मेरी जगह नुकसान आएगा। तैयार रहो। फिर भी, मैं तुम्हें अंतिम वरदान देना चाहती हूँ। जो इच्छा हो, माँग लो। सुनार बहुत समझदार था। उसने विनम्रता से कहा, “नुकसान आए तो आने दो, लेकिन मेरे परिवार में आपसी प्रेम और सौहार्द बना रहे। यही मेरी एकमात्र इच्छा है।

माँ लक्ष्मी ने तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गईं।

कुछ दिनों बाद, सबसे छोटी बहू खिचड़ी बना रही थी। उसने नमक और मसाले डाले और अन्य काम करने चली गई। तभी दूसरी बहू आई और बिना चखे नमक डालकर चली गई। इसी तरह तीसरी, चौथी बहू और उनकी सास ने भी बिना चखे नमक डाला।

शाम को सबसे पहले सुनार ने भोजन किया। पहला निवाला मुँह में लिया तो खिचड़ी में बहुत अधिक नमक था। उसे समझ आया कि नुकसान आ चुका है, लेकिन वह चुपचाप खिचड़ी खा गया। फिर बड़ा बेटा आया, उसने पहला निवाला लिया और पूछा, “पिताजी ने भोजन कर लिया? उन्होंने कुछ कहा?

सभी महिलाओं ने जवाब दिया, “हाँ, उन्होंने भोजन कर लिया और कुछ नहीं बोले।

बेटे ने सोचा, “जब पिताजी ने कुछ नहीं कहा, तो मैं भी चुपचाप खा लेता हूँ। इसी तरह घर के सभी सदस्य एक-एक कर आए, पहले वालों के बारे में पूछा, और चुपचाप भोजन करके चले गए।

रात को नुकसान (हानि) ने हाथ जोड़कर सुनार से कहा, “सेठ जी, मैं जा रहा हूँ।

सुनार ने पूछा, “क्यों?”

नुकसान ने जवाब दिया, “आप लोग एक किलो नमक खा गए, फिर भी कोई झगड़ा या शिकायत नहीं हुई। यहाँ मेरा कोई काम नहीं है।”

शिक्षा

झगड़ा, कमजोरी, कलह और हानि की पहचान है। जहाँ प्रेम है, वहाँ माँ लक्ष्मी का वास है। हमेशा प्यार और सम्मान बाँटें। छोटे-बड़े का आदर करें। भले ही आपके पास बहुत धन हो, यह न सोचें कि अब किसी की जरूरत नहीं है। मन में नकारात्मक विचार न आने दें। यदि आपके जीवन में प्रेम नहीं है, तो कितनी भी पूजा करें, माँ लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं होंगी।