शेरो शायरी कलेक्शन

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mahavir dangi
महावीर डांगी

हरियाणा कृषि विश्विधालय में मैं साल 1997 से लेकर मार्च 2000 तक बतौर डिपार्टमेंट ऑफ़ फ़ूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी का छात्र रहा और साल 1998 में हमारे से जूनियर बैच में एक साथी आया महावीर डांगी। जो डॉ डैंग के नाम से हमारे आपसी जूनियर सीनियर भाई चारे में आगे चलकर मशहूर हुआ।

महावीर की खासियत यह थी कि उसे सैंकड़ों हज़ारों शेर याद थे और किसी भी स्थिति पर वो शेर सुना सकता था। मैं हमेशा यह सोचता था कि कभी समय लगेगा तो मैं जीवन में एक शेरो शायरी का कलेक्शन बनाऊंगा। लेकिन चवन्नी अठन्नी की दौड़ में इतने फंसे रहे कि कभी सिस्टम बैठ ही नहीं पाया ।

अब लगभग इक्कीस साल के बाद ब्लॉग शुरू किया है तो आज डॉ डैंग की याद आ गयी और एक पोस्ट बनाई है और सारा कलेशन धीरे धीरे यहीं संग्रहित करूंगा यह पेज डॉ डैंग को ही समर्पित है। महवीर अब जीवन में तरक्की करते करते बतौर सीनियर फ़ूड टेक्नोलॉजिस्ट पुणे महाराष्ट्र में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं और हम सभी के लिए एक कांस्टेंट प्रेरणा के स्त्रोत है डॉ डैंग के साथ बिताया हुआ समय एक यादगार उपलब्धि है।

क्रमांक शेर शायर
1.हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए
दुष्यंत कुमार
2.नेपथ्य का सच
एक गुडिया की कई कठपुतलियों में जान है
दुष्यंत कुमार
3.एक खंडहर के हृदय -सी , एक जंगली फूल -सी
आदमी की पीर गूंगी ही सही गाती तो है
दुष्यंत कुमार
4.मत कहो, आकाश में कुहरा घना है ,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
दुष्यंत कुमार
5.लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पायी दुष्यंत कुमार
6.राख, कितनी राख है , चरों तरफ बिखरी हुई
राख में चिंगारियां ही देख , अंगारे ना देख
दुष्यंत कुमार
7.तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए
छोटी छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फैंक दी
दुष्यंत कुमार
8.इन खंडहरों में होंगी तेरी सिसकियाँ जरूर
इन खंडहरों की ओर सफ़र आप मुड गया
दुष्यंत कुमार
9.यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलो उम्र भर के लिए
दुष्यंत कुमार
10.बाग़बां ने आग दी जब आशियाने को मेरे
जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा करने लगे
साकिद लखनवी
11.घर से मस्जिद बहुत दूर है चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हसाया जाए
हमेशा मंदिरों -मस्जिदों में वह नही रहता
सुना है कि बच्चों में छिपकर वो खेलता भी है
निदा फाजली
12.बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं
और नदियों के किनारे घर बने हैं
दुष्यंत कुमार
13.होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिये
इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिये
दुष्यंत कुमार
14.सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही था
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
दुष्यंत कुमार
15.आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
दुष्यंत कुमार
16.इश्क बेच रहे थे कुछ लोग बाज़ार में
मैंने पूछा वफ़ा भी साथ में मिलेगी क्या , बुरा मान गये
गुलजार