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बिहार की रक्तरंजित राजनीति और जातीय समीकरणों का नया मोड़

महत्वपूर्ण तथ्य

  • मोकामा में जनसुराज समर्थक नेता दुलारचंद यादव की हत्या प्रथम चरण से पहले हुई।
  • हत्या को लेकर जनसुराज कार्यकर्ताओं ने जदयू के बाहुबली नेता अनंत सिंह के समर्थकों पर आरोप लगाए।
  • अनंत सिंह ने पलटवार करते हुए अपने काफिले पर पथराव का आरोप लगाया।
  • दुलारचंद यादव कभी लालू प्रसाद यादव के नजदीकी और मोकामा क्षेत्र में प्रभावशाली रहे।
  • मोकामा सीट पर 1990 के बाद से बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है।
  • अनंत सिंह ने 2005 से 2020 तक पाँच बार इस सीट पर जीत दर्ज की।
  • मोकामा की सामाजिक संरचना में भूमिहार निर्णायक लेकिन यादव और ओबीसी भी प्रभावी हैं।
  • हत्या के बाद यादव वर्ग में रोष बढ़ा जो जनसुराज और राजद को फायदा पहुँचा सकता है।
  • यह घटना एनडीए के लिए इस सीट पर रणनीतिक दबाव उत्पन्न करती है।
  • 1908 में मोकामा क्रांतिकारी आंदोलन का केंद्र रहा था, आज यह राजनीतिक हिंसा का प्रतीक बन गया है।

बिहार की राजनीति अक्सर जातीय पहचान, स्थानीय वर्चस्व और शक्ति प्रदर्शन के इर्द-गिर्द घूमती रही है। हाल ही में विधानसभा चुनाव 2025 की शुरुआत से पहले मोकामा में जनसुराज समर्थक वरिष्ठ नेता दुलारचंद यादव की हत्या ने राजनीतिक माहौल को गहरा झटका दिया है। यह घटना केवल एक हत्या भर नहीं, बल्कि उस राजनीतिक संस्कृति का आईना है, जिसमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया अब भी हथियारों और जातीय निष्ठा के बीच संघर्षरत है।

घटना का विवरण और आरोपों का दौर

दुलारचंद यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। उनके समर्थकों का आरोप है कि जदयू के उम्मीदवार और लंबे समय से मोकामा पर प्रभाव बनाए हुए बाहुबली नेता अनंत सिंह के समर्थकों ने इस हमले को अंजाम दिया। आरोप यह भी लगाया गया कि पहले लाठी-डंडों से हमला हुआ, फिर वाहन से कुचला गया। दूसरी ओर, अनंत सिंह का पक्ष है कि उनके काफिले पर पथराव हुआ, जिससे अफरातफरी में गोली चली।

इस विवाद ने तेजी से राजनीतिक रंग लिया और विपक्षी नेताओं ने प्रशासन पर सवाल उठाए। पप्पू यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेता इस हत्या को कानून-व्यवस्था की विफलता और मोकामा में बाहुबली प्रभाव की निरंतरता के रूप में देख रहे हैं।

दुलारचंद यादव: राजनीतिक यात्रा और संघर्ष

दुलारचंद यादव कभी लालू प्रसाद यादव के बेहद भरोसेमंद नेता माने जाते थे। टाल क्षेत्र में उनकी पकड़ मजबूत थी और वे 1990 के दशक में मोकामा से चुनावी मैदान में भी उतरे। बाद के वर्षों में वे जनसुराज पार्टी के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी उर्फ लल्लू मुखिया के समर्थक बने और खुलकर अनंत सिंह के विरोध में सक्रिय हुए। यह विरोध अब उनके जीवन की अंतिम रेखा बन गया।

मोकामा: बाहुबली वर्चस्व की प्रयोगशाला

पटना से लगभग 85 किलोमीटर दूर स्थित मोकामा विधानसभा क्षेत्र लंबे समय से बाहुबल और राजनीति के गठजोड़ का प्रतीक रहा है। 1990 से यहाँ बाहुबली नेताओं का प्रभाव स्पष्ट रहा। कभी दिलीप सिंह, जिन्हें लोग बड़े सरकार कहते थे, फिर उनके बाद अनंत सिंह की पहचान छोटे सरकार के रूप में उभरी। अनंत सिंह ने दल बदलते हुए भी लगातार वर्षों तक इस क्षेत्र पर अपना प्रभाव बनाए रखा, यहाँ तक कि जेल में रहते हुए भी चुनाव जीते और बाद में अपनी पत्नी को उपचुनाव में विजयी करवाया।

जातीय समीकरण और चुनावी असर

मोकामा की राजनीति में भूमिहार समुदाय निर्णायक माना जाता है। इसके साथ ही यादव, कुर्मी, पासवान, धानुक तथा अन्य ओबीसी समुदाय भी चुनाव परिणाम प्रभावित करते हैं। दुलारचंद यादव की हत्या के बाद यादव समुदाय में नाराज़गी बढ़ी है, जो जनसुराज और राजद के पक्ष में एकजुटता बढ़ा सकती है। दूसरी ओर, भूमिहार मतदाताओं के बीच भी असहजता का माहौल बनना जदयू के लिए चुनौती हो सकता है, क्योंकि यह वर्ग अब तक अनंत सिंह का प्रमुख समर्थन आधार रहा है।

संभावित राजनीतिक परिणाम

  • जनसुराज उम्मीदवार के लिए सहानुभूति लहर बढ़ सकती है।
  • अनंत सिंह की छवि पर नकारात्मक असर चुनावी समीकरण बदल सकता है।
  • राजद और उसके सहयोगियों को ओबीसी और यादव मतदाताओं में लाभ मिल सकता है।
  • एनडीए के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की लड़ाई में बदल चुकी है।

मोकामा का ऐतिहासिक विरोधाभास

1908 में यही मोकामा घाट वह स्थान था, जहाँ क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी ने ब्रिटिश अधिकारी किंग्सफोर्ड की हत्या के प्रयास के बाद आत्मबलिदान किया। आज वही भूमि सत्ता संघर्ष के नाम पर हिंसा और भय की राजनीति का प्रतीक बन गई है। यह विडंबना बताती है कि परिवर्तन की दिशा अब भी अधूरी है।

निष्कर्ष

यह सवाल अब भी बना हुआ है कि बिहार का लोकतंत्र कब तक ताकत और जातीय पहचान के सहारे चलाया जाएगा। दुलारचंद यादव की हत्या केवल एक नेता की मृत्यु नहीं, बल्कि उस उम्मीद की चोट है जो एक शांतिपूर्ण और निष्पक्ष राजनीतिक भविष्य की तलाश में थी।