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भारत अफगानिस्तान संबंध: इतिहास, चुनौतियां और भविष्य की कूटनीतिक दिशा

महत्वपूर्ण तथ्य

  • भारत और अफगानिस्तान के सांस्कृतिक व व्यापारिक संबंध प्राचीन समय से जुड़े हैं।
  • 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद अफगानिस्तान उन देशों में था जिसने भारत को तुरंत मान्यता दी।
  • 1950 में दोनों देशों के बीच (Friendship Treaty) पर हस्ताक्षर किए गए।
  • 1979-1989 के दौरान सोवियत हस्तक्षेप पर भारत ने संतुलित कूटनीतिक रुख अपनाया।
  • 1996-2001 में तालिबान के पहले शासन के दौरान भारत ने तालिबान को मान्यता नहीं दी।
  • 2001 के बाद भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण हेतु लगभग 3 अरब डॉलर की सहायता दी।
  • भारत ने अफगानिस्तान में सड़क, अस्पताल, स्कूल, संसद भवन और (Salma Dam) जैसी परियोजनाओं में निवेश किया।
  • 2021 में तालिबान की पुनर्वापसी के बाद भारत ने राजनयिक उपस्थिति सीमित की लेकिन मानवीय सहायता जारी रखी।
  • अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति भारत को मध्य एशिया तक जोड़ने का महत्वपूर्ण मार्ग प्रदान करती है।
  • हालिया कूटनीतिक संपर्कों ने भारत-अफगान संबंधों को फिर से सक्रिय करने की दिशा में संकेत दिए हैं।

 

भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते एतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर बेहद गहरे रहे हैं। प्राचीन व्यापार मार्गों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और क्षेत्रीय संपर्क ने इन दोनों देशों को लंबे समय तक जोड़े रखा। आधुनिक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी यह संबंध कई उतार-चढ़ाव से गुजरा, लेकिन भरोसा और सहयोग की भावना लंबे समय तक बनी रही।

स्वतंत्रता के बाद संबंधों की शुरुआत

1947 में भारत के स्वतंत्र होने के तुरंत बाद अफगानिस्तान उन शुरुआती देशों में शामिल था जिसने भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद 1950 में दोनों देशों ने भारत-अफगान मैत्री संधि (Friendship Treaty) पर हस्ताक्षर किए, जिसने व्यापार, सांस्कृतिक संपर्क और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग को नए आयाम दिए। इस दौर में दोनों देश (Non-Aligned Movement) के साझा दृष्टिकोण में भी जुड़े रहे।

सोवियत हस्तक्षेप और भारत का संतुलित रुख (1979-1989)

1979 में सोवियत संघ की अफगानिस्तान में सैन्य कार्रवाई ने पूरे क्षेत्र की राजनीति को प्रभावित किया। भारत ने इस संवेदनशील परिस्थिति को समझते हुए ऐसा रुख अपनाया जिसमें अफगानिस्तान की संप्रभुता का समर्थन भी शामिल था और सोवियत संघ के साथ अपने संबंधों को भी संतुलन में रखा। भारत ने इस अवधि में मानवीय सहायता तो दी, परंतु आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से दूर बना रहा।

तालिबान शासन और भारत की चिंता (1996-2001)

तालिबान के उदय ने भारत के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर चुनौतियां पैदा कीं। तालिबान की नीतियां पाकिस्तान समर्थित मानी जाती थीं, जिससे भारत की सीमाओं और सुरक्षा पर प्रत्यक्ष खतरे की संभावना बढ़ी। भारत ने तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी और उस समय (Northern Alliance) का समर्थन किया।

पुनर्निर्माण में भारत की सक्रिय भूमिका (2001-2021)

अमेरिका-समर्थित नई सरकार के गठन के बाद भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत ने सड़क निर्माण, संसद भवन, अस्पताल, स्कूल, पेयजल परियोजनाओं और 42 मेगावाट क्षमता वाले सलमा बांध के निर्माण जैसे कार्यों में आर्थिक सहयोग किया। अफगान छात्रों को भारत में उच्च शिक्षा के लिए (Scholarships) भी प्रदान की गईं। यह वह दौर था जब दोनों देशों के संबंध सबसे अधिक विश्वसनीय और स्थिर थे।

2021 के बाद नई स्थिति और भारत की रणनीति

2021 में तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद भारत ने अपने राजनयिक स्टाफ को सुरक्षा कारणों से वापस बुला लिया, परंतु मानवीय सहायता को रोका नहीं। हाल में भारत ने काबुल में अपना तकनीकी मिशन फिर सक्रिय किया है, जिससे सीमित लेकिन स्पष्ट संपर्क का संकेत मिलता है।

पाकिस्तान और भू-राजनीतिक समीकरण

तालिबान की पुनर्वापसी को पाकिस्तान ने एक अवसर की तरह देखा था, लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव ने यह संकेत दिया कि परिस्थितियां पाकिस्तान की अपेक्षा के अनुकूल नहीं रहीं। इसके उलट, अफगानिस्तान द्वारा भारत के साथ संवाद को बढ़ावा देने से क्षेत्रीय समीकरण में नया संतुलन उभरता दिख रहा है।

भविष्य की दिशा

भारत यह मानता है कि अफगानिस्तान की स्थिरता पूरे दक्षिण और मध्य एशिया की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। अफगानिस्तान भारत के लिए मध्य एशिया तक पहुंच का भौगोलिक द्वार है। ऊर्जा, व्यापार और सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए भारत का अफगानिस्तान से सकारात्मक और व्यावहारिक संवाद जारी रहना दोनों देशों के हित में है।

निष्कर्ष

भारत और अफगानिस्तान के संबंध केवल राजनीति या रणनीति तक सीमित नहीं हैं। यह संबंध जनता, संस्कृति, विश्वास और सहयोग पर आधारित हैं। बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में यह जरूरी है कि दोनों देश आपसी भरोसे और स्थिर साझेदारी को आगे बढ़ाएं।