Site icon Kamal Jeet

वोकल फॉर लोकल का हमारे जीवन में महत्त्व इसके आगे खड़ी चुनौतियां और संभावित समाधान 

kamal jeet and sant lal sharma handshake webp

भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र भाई मोदी जी ने साल 2023 में अपने कार्यक्रम मन की बात के जरिये देशवासियों को संबोधित करते हुए वोकल फॉर लोकल की बात कही थी जिसके मायने बहुत गहरे हैं। बेहद  सरल लगने वाली यह बात हम सभी के जीवन को प्रभावित करने वाली है। पहले तो हम एक बार यह चर्चा कर लेते हैं कि ये वोकल फॉर लोकल है क्या बला?

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत एक बड़ी मार्किट है जहाँ हर कोई घुसना चाहता है आज से नहीं कभी से, हर कोई यहाँ माल बेचना चाहता है और अपना मुनाफा कमाना चाहता है। देश के प्रधान मंत्री की कुर्सी पर सारे आंकड़े आते हैं जहाँ से पता चलता है कि कौन कहाँ क्या और कितना बेच रहा है? फैक्ट्रियों में मशीनों की मदद से बना माल बेहद सस्ता होता है और उसे सप्लाई चेन डिस्ट्रीब्युशन की मदद से गली नुक्कड़ तक भेजा जाता है और विज्ञापनों की मदद से डिमांड भी बनाई जाती है और विशेष कानूनी प्रावधानों की मदद से मार्किट को कण्ट्रोल करके रखा जाता है।

गांवों की स्थिति

आज यदि गाँव की किसी भी दुकान में जा कर उसे एक निगाह भर के देखा जाए तो मालूम चलता है कि उस दुकान में गाँव या आसपास का बनाया हुआ कुछ भी सामान नहीं मिलता है। गाँवों की दुकानों में बच्चों के खाने से लेकर बड़ों के उपयोग में लाई जा सकने वाली सभी चीजें शहरों से फैक्ट्रीयों में बनकर आती हैं और गाँवों में उपभोग की जाती हैं।

ऐसा एकदिन में नहीं हुआ है इस मार्किट को बनाया गया है इसमें रेडियो टी.वी. अखबार सिनेमा के मदद ली गयी है और अब सबसे आगे इन्टरनेट और सोशल मीडिया इसमें बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

गांधी जी की सोच    

आपको डांडी यात्रा तो याद ही होगी आपने स्कूल में इसके बारे में जरूर पढ़ा होगा। ब्रिटिश सरकार ने नमक एकाधिकार कानून पारित किया था जिसके विरोध में गांधी जी ने 12 मार्च 1930 से 9 अप्रैल 1930 तक चौबीस दिवसीय पैदल यात्रा का आयोजन किया था। इस यात्रा में उन्होंने 390 किलोमीटर तय किये थे लेकिन उस समय इस यात्रा की चर्चा पूरे देश में हुई थी और इस यात्रा के उदेश्य से पूरा देश प्रभावित हुआ था।

दरअसल गांधी जी जानते थे कि खाने पीने ओढने पहरने की व्यवस्था में कितनी बड़ी अर्थ व्यवस्था सृजित होती है और अंग्रेजों ने नमक जैसी छोटी व्यवस्था पर हाथ डाल कर कैसे देसी अर्थव्यवस्था में पलीता लगाने का काम किया है। गांधी जी ने सन्देश दिया कि नमक बनाना हमारा अधिकार है और हम सदियों से नमक बनाते आये हैं और नमक के व्यापार में लाखों बंजारे लगे हुए है जो पूरे देश में नमक की सप्लाई करती हैं।

यदि नमक निर्माण में दखलअन्दाजी हो गयी तो आम जन इस अर्थ व्यवस्था से बाहर हो जायेंगे और आर्थिक ग्राम ग्राम गली गली में फैली सम्पन्नता नष्ट हो जाएगी। इसीलिए उन्होंने पैदल यात्रा निकाली जिसका असर इतना बड़ा हुआ कि लगभग साठ हज़ार लोगों अपनी गिरफ्तारियां दी।  अगले साल 1931 में राउंड टेबल कांफ्रेंस में भी इस बात का जिक्र हुआ और अंग्रेजों को कई मुद्दों पर पीछे हटना पड़ा। 

हमारी वर्तमान स्थिति और आने वाले दिन  

भारतीय बाज़ार में उपभोक्ता की स्थिति इस समय ऐसी हो रखी है कि उसके पास ऑप्शन बहुत उपलब्ध हैं। इन्टरनेट के माध्यम से मांग को पहचान कर फिर उपभोक्ता को अलग अलग तरीके से विज्ञापन दिखा कर माल बेचने से अब हर कोई परिचित है। हमारे उपभोक्ता विभिन्न उत्पादों की कीमतों में उनके गुणों में और उनकी फीडबैक के बारे में पूरा ब्यौरा देख कर ही खरीदारी करते हैं।

हम कहीं भी चले जाएँ तो हमें दुनिया भर के लड़के बड़े बड़े बैग कन्धों पर लटका कर मोटर साईकिल पर घूमते हुए डिलीवरी करते हुए मिल जाते हैं। थोड़े दिनों के बाद मुझे ऐसा लगता है कि हरेक घर की बालकनी या छत पर एक प्लेटफॉर्म रखा मिलेगा जिसपर कुछ कोड प्रिंट होगा और कोई भी सामन जिसे आर्डर किया जाएगा उसकी डिलीवरी ड्रोन के द्वारा इसी प्लेटफॉर्म पर कर दी जाएगी। 

भारत में उपभोक्ताओं के सामने चुनौतियाँ और संभावनाएं  

हमारी टेक्स्ट बुक्स में नर्सरी से पी.एच.डी. तक की पढ़ाई में ऐसे विषयों की घोर कमी है जिससे छात्र छात्राओं के मन किसी उत्पाद को बनाने और उसे बेचने का ख्याल आये। छात्र छात्राओं को उपभोक्ता बनाने और उन्हें विभिन्न उपलब्ध ब्रांडों की पहचान के बारे में स्कूल से ही बताने के प्रयास आज टेक्स्ट बुक्स के माध्यम से जरूर किये जा रहे हैं।

पिछले साल की बात हैं मेरी बिटिया गणित का एक सवाल हल कर रही थी जिसमें रकम थी कि एक 750 मि.ली. की कोल्डड्रिंक (पोपुलर ब्रांड) की बोतल से चार मित्रों को यदि बराबर मात्रा में बांटी जाए तो हरेक के हिस्से में कितनी कोल्ड ड्रिंक आयेगी। मैं स्टेटमेंट सुनकर चौंका और जब मैंने गणित की पुस्तक के सवाल देखे तो सभी सवालों में पोपुलर ब्रांडों और उत्पादों का जिक्र करके स्टेटमेंट यानि रकमें बनाई गयी थी। छात्र छात्राओं को स्कूल की किताबों से ही बाजार में उपलब्ध सभी समानों का पता बताने का तरीका एक सोची समझी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी का हिस्सा है।

आज हमारे घर पचासों तरह के उत्पादों से भरे पड़े हैं जिसमें खाने पीने की चीजों के रंग बिरंगे पैकेट से लेकर वाशरूम एसेसरीज, झाड़ू पौंछे के सामन आदि की लम्बी फेरहिस्त है। यह सभी उत्पाद दूर दूर से बनकर भारत के कोने कोने में पहुँच रहे हैं और हम उन्हें खरीदना हमारे मजबूरी है। इस वजह से अब स्थानीय उत्पादों का मिलना नदारद है और जो मिल रहा है उसे ही खरीदना हमारी मजबूरी है।

उत्पादक का नजरिया, कार्ययोजना और संभावनाएं   

भारत एक बड़ा बाज़ार है यही एक बड़ी संभावना है लेकिन इस बाजार को कैसे पकड़ा जाए यह एक सोचने का विषय है। खेती में डेली इनकम मॉडल स्थापित करने वाले स्वर्गीय सुरेश गोयल जी ने मुझे एक बार बताया था कि हम भारत में जहाँ भी रहते हैं उसके सात किलोमीटर दायरे में कम से कम 50 हज़ार लोग रहते हैं और यही पचास हज़ार लोग हमारे लक्ष्य में प्राथमिकता पर होने चाहियें हम जो भी चीज बनाएं वो हमारी गुणवत्ता के स्टैण्डर्ड पर हमारे से बढ़िया और हमारे सस्ता कोई और नहीं दे सकता है।

प्राकृतिक संसाधनों की समझ हमेशा स्थानीय लोगों के लिए एक बड़ी संभावना होती है। मुझे याद है कि पिछले साल हरियाणा के यमुनानगर जिले के सढोरा ब्लाक के एक गाँव में स्थानीय महिलाओं के साथ नीम साबुन को बनाने की कार्ययोजना पर चर्चा करने लग रहा था तो एक सवाल आया कि नीम साबुन बनाने के लिए नीम के पत्तों के अर्क की आवश्यकता पड़ेगी और इसके लिए नीम के पत्तों की निरंतर आवश्यकता पड़ेगी। गाँव में कितने नीम के पेड़ है इसका हिसाब किसी की पास नहीं था। तो एकबात चली कि गाँव का एक सर्वेक्षण किया जाए कि गाँव में पेड़ों के रूप में कितने प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं जिनके सस्टेनेबल दोहन से विभिन्न प्रकार के अर्क बनाये जा सकते हैं  जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार के साबुन आदि बनाने में किया जा सकता है। जब सर्वेक्षण हुआ तो मालूम चला कि गाँव के आसपास ही ऐसे बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं।

कमोबेश यही स्थिति पूरे देश के गाँवों कस्बों और छोटे शहरों में है बस हम अनजान हैं और हमें उस किकस्टार्ट का नहीं पता है कि कोई काम कैसे शुरू करना है और उसे कैसे उपभोक्ताओं तक पहुँचना है। बिजनेस में ब्रेक ईवन निकालना, प्रॉफिट लोस का ध्यान रखना, पैकेजिंग , प्रमाणीकरण , डिमांड बनाना और सप्लाई चेन को मैनेज करना इत्यादि बहुत सारे काम हैं जो एक उत्पादक को करने पड़ते हैं। इन सभी पहलुओं का ध्यान रखना कोई बड़ी बात नहीं है आजकल इन्टरनेट पर विशेषकर यूट्यूब से मदद ली जा सकती है।  

राष्ट्रीय कौशल मिशन के सेंटर्स भी आज देश में सभी जगह मौजूद हैं जहाँ साठ कौशल का प्रशिक्षण निशुल्क उपलब्ध हैं। बस आवश्यकता है तो एक सोच की जो कुछ बड़ा करनी की इच्छाशक्ति रखती हो।

सोशल मीडिया का प्रमाणीकरण और मार्केटिंग में सहयोग

मेरे एक मित्र हैं कुंवर रविन्द्र राणा जो करनाल के असंध ब्लाक के सालवन गाँव में रहते हैं और जैविक खेती करते हैं। उन्हें प्रमाणीकरण की आवश्यकता महसूस हुई और जब उन्होंने प्रमाणीकरण करवाने के लिए पता किया तो उन्हें यह प्रक्रिया बेहद महंगी लगी। फिर उन्होंने सोचा कि मेरी समस्या कोई बहुत बड़ी थोड़ी ना है मेरे पास तो उत्पादन सीमित है और मेरे तो ग्राहक भी मेरे आसपास ही रहते हैं। क्यों ना मैं एक फेसबुक में पेज बनाऊं और अपने ग्राहकों को जोड़ लूं और अपने फ़ार्म की सभी गतिविधियों को पेज एक माध्यम से सभी को अवगत करवाऊं। विचार में दम था और बड़ा ही जोरदार रेस्पोंस रविन्द्र को मिला। जिसदिन खेत से लेबर ने खरपतवार एक एक करके निकाले और उसका एक बड़ा ढेर फेसबुक के माध्यम से रविन्द्र से जुड़े उपभोक्ताओं ने देखा तो उन्हें यकीन हो गया कि खेत में खरपतवारनाशी जहरीले रसायनों का प्रयोग नहीं हुआ है। बस जब उपभोक्ता ने देख लिया और उसे यकीन हो गया तो मैदान जीत लिया गया। कालान्तर में एक और घटना घटी जिसने मेरे ह्रदय को छुआ। रविन्द्र बताते हैं कि गेहूं की कटाई से पूर्व मौसम खराब हुआ और खेत में ओलावृष्टि से बहुत नुक्सान हुआ। जब मैंने खेत और फसल की स्थिति को अपने फेसबुक पेज पर अपडेट किया तो मेरे सभी उपभोक्ताओं के फोन मेरे पास आये और उन्हें भी इस बात की चिंता हुई कि क्या उन्हें जैविक गेहूं मिल भी पाएंगे या नहीं।

सभी के लिए खुली कार्ययोजना

मैं ऐसे सभी उत्साही जनों के साथ एक कार्ययोजना सांझी करना चाहता हूँ जिसको प्रयोग करके वो अपना एक स्थानीय रोजगार सेट कर सकते हैं। अपने  रोजगार के लिए आपके पास एक बैंक अकाउंट , ट्रेड नेम और बहुत आगे की सोच रखते हैं तो एक ट्रेडमार्क होना चाहिए। आज हरेक कस्बे और छोटे शहर का फेसबुक पेज मौजूद है। आप जहाँ भी रहते हैं वहां के स्थानीय फेसबुक पेज के एडमिन से अपनी पहचान निकालें और उसे बताएं कि आप पेज का उपयोग अपने द्वारा बनाये जा रहे अमुक सामान के बारे में निरंतर अपडेट करने के लिए करना चाहते हैं और जब आमदनी होने लगेगी तो मैं पेज को भी आर्थिक रूप से सपोर्ट करने लगूंगा। एक निश्चित राशि आप पहले दिन से ही देना निर्धारित कर लें इससे आपको एक मार्किट को विकसित करने का आधार मिल जायेगा। थोड़ा रिसर्च करके स्थानीय आवश्यकता के मुताबिक़ एक प्रोडक्ट खोजिये और उसे बनाने के लिए एक जगह की व्यवस्था कीजिये या पहले से कोई बना रहा है तो अपनी स्पेसिफिकेशन देकर उससे बनवाइए लेकिन अपने नाम से खुद बेचिए। जानेमाने कंपनी सेक्रेट्री विश्वजीत गुप्ता जी अपने अनुभव से कहते हैं कि किसी भी प्रोडक्ट को स्थनीय मार्किट में जीत हासिल करने के लिए बस तीन सूत्रों की आवश्यकता रहती है 1. क्वालिटी 2. डीलिंग और 3. रेट बस इनका ध्यान रख कर आप एक कारोबार को सेट कर सकते हैं।          

Exit mobile version