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बद्री नारायण शर्मा की कहानी

26 मार्च 1950 गांव देईदासपुरा तहसील सूरतगढ़ जिला श्री गंगानगर राजस्थान जन्म होने के बाद मेरी भारत यात्रा जो 28 अगस्त 1998 से 8 अक्टूबर 1998 तक कुल 42 दिन की थी ने मेरी जिन्दगी को बदल बदल कर रख दिया।

इस अभावग्रस्त इलाके में जन्म लेकर जहां पीने को पानी नहीं यातायात का कोई साधन नहीं शिक्षा सिर्फ चौथी पांचवीं तक के स्कूल सिंचाई का कोई साधन नहीं, बिजली सड़क, कुछ नहीं आमदनी का जरिया सिर्फ पशुपालन बारानी खेती ग्वार मोठ बाजरी हाङी में चना वो भी 1970 में शुरूआत लेकिन परिस्थितियों ने मुझे मजबूत बनाया

धीरे-धीरे सर्व प्रथम 20 मार्च 1986 को हिमालय का पानी पीने के लिए पाइपों द्वारा नहर से आया कुएं से खारे पानी से छुटकारा 1978 में 3 अगस्त को ट्रैक्टर हिन्दुस्तान नया लाकर खेती शुरू की ऊंटों की खेती से छुटकारा 1987 में इंजन से नलकूप से सिंचाई की इलाक़े में पहला नलकूप पहला ट्रैक्टर पहला खजूर बगीचा अनेक नये कार्य करके खेती किसानी में प्रयोग किये जो शत-प्रतिशत सफल रहे।

1995 मे सङक आई यातायात के साधन शुरू 2000 में लाइट आई अंधेरे से छुटकारा तथा 2002 में नलकूपों पर क़ृषि कनेक्शन दिये रोजगार की समस्या से छुटकारा तथा 2009 में खजूर बगीचा लगाया व 2013 में उत्पादन शुरू भूख से छुटकारा मिला


आज पूरे भारत से किसान बद्री नारायण शर्मा खजूर फार्म देईदासपुरा सूरतगढ़ में आने को आतुर हैं और आ भी रहें हैं नहरी क्षेत्र के किसान यहां खारक बनवाने आते हैं खजूर प्रशिक्षण के लिए किसान पंजाब हरियाणा राजस्थान गुजरात मध्यप्रदेश उत्तर प्रदेश दिल्ली बंगाल से आ रहें हैं विदेशों में इंग्लैंड जर्मनी सऊदी अरब दुबई रुमानिया आदि देशों में जो भारतीय वहां मजदूरी करते हैं कारोबार करते हैं फ़ोन पर बात करते हैं तथा भारत आने पर वो मेरे पास बगीचे में आते हैं जिसमें पंजाब के लोग ज्यादा आते हैं।

उनकी बातें सुनकर और इंटरेस्ट को देख कर मन हर्षित हो जाता है कि जो कहावत पुराने जमाने में प्रचलित थी कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। सही साबित हो गयी लेकिन पूरे साठ साल लग गये मैंने खेती किसानी का काम 15 मई 1963 को सातवीं पास करने के बाद शुरू किया जो आज तक अनवरत जारी है लेकिन जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो साथ वाले आधे तो आगे चले गये है तथा आधे अपने घर पर आराम कर रहे हैं बुढ़ापे के कारण शरीर ने साथ देना बन्द कर दिया है लेकिन मैं सारा दिन यहां प्रशिक्षण केन्द्र पर भाषण देता रहता हूं।

मैंने पूरे देश की कई यात्राएं की लेकिन सबसे बङी यात्रा भारत भ्रमण जो 28 अगस्त 1998 से 8 अक्टूबर 1998 तक कुल 42 दिन की थी जो कन्याकुमारी से कश्मीर तक व कलकत्ता बंगाल से ओखा द्वारका गुजरात तक थी उस यात्रा का परिणाम है आज एक सफल किसान की भूमिका निभा रहा हूं भ्रमण यात्राओं से मनुष्य को शिक्षा मिलती है जानकारी के लिए किताबें पढ़ने की आवश्यकता नहीं है कोई भी विषय किताबों में दस बार पढ़ने से एक बार देखना ज़्यादा अच्छा रहता है।

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