एक छोटा बच्चा जैसे ही होश सम्भालता है वो अपने आसपास के माहौल से सूचनाएं ग्रहण करनी शुरू करता है और उनके मन में सूचनाओं का एक डेटाबेस बनना आरम्भ हो जाता है। जिसका उपयोग वो जीवन भर अपने सामने आने वाले नये नए चैलेन्ज को हल करने में करता रहता है। यदि उसने अपने आसपास लोगों को समस्याएं हल करते हुए सुना है तो वो हमेशा समस्या में से समाधान देखने की ही कोशिश करेगा और इसके विपरीत यदि उसने लोगों को शिकायतें करते ही सुना और देखा है तो फिर वो आपने सामने आई समस्या में से एक और समस्या निकाल कर बैठ जाएगा। आज समाज में हमारे सामने ऐसे लोगों की भरमार है जो हरदम अपने पास उपलब्ध संसाधनों की कमीं का ही रोना रोते हुए दिखाई देते हैं और समस्या को सुलझाने की बजाये और अधिक विकट करते चले जाते हैं।
मुझे बहुत अच्छे से याद है जब मैं छोटा था और गिर जाता था मेरे सर में फर्श या कोई और चीज लग जाती थी तो मेरी माँ हमेशा यही कहती थी कि सर पक्का हो गया देखो कीड़ी मर गयी तो मैं अपने सर के दर्द को भूल कर मरी हुई कीड़ी को ढूँढने में जुट जाता था।
मैं आठवीं कक्षा की परीक्षा के बाद कलानौर में नानी के खेत पर अपने मौसेरे भाई गौतम के साथ गया हुआ था वहां एक पेड़ पर चढ़ते समय वहां पहले से पड़ी किसी नुकीली चीज से मेरी उँगलियों के बीच में गहरा कट लग गया और खून का फव्वारा बह निकला वहां मौजूद कपास चुगने वाली एक महिला ने अपनी दराती से अपनी साडी से एक टुकडा काट कर खून रोकने के लिए पट्टी बाँध दी खेत से नानी का घर भी कम से चार किलोमीटर था और हम दोनों भाई इस डर के साथ घर पहुंचे कि नानी पीटेगी। हाथ की हालत देख कर नानी स्थानीय डॉक्टर के पास ले गयी और डॉक्टर ने भी एक इंजेक्शन लगा कर कह दिया कि रोहतक ले जाओ क्यूंकि उसे पता था कि मेरी मां मेडिकल कालेज रोहतक में है। मैं जब एक घंटे के बाद मेडिकल कालेज कि इमरजेंसी में पहुंचा तो माँ सामने ही मिल गयी और मैंने कहा कि ऊँगली कट गयी उसने कपडे की पट्टी खोल कर ध्यान से देखा तो कट बहुत गहरा था तुरंत वो मुझे ओपरेशन थिएटर में ले गयी जहाँ डॉक्टर पहले से मौजूद थे उन्होंने मेरी हथेली में लोकल एनेस्थेसिया के इंजेक्शन दिए और मेरे उपर कपड़ा डाल दिया
मैंने कुछ देर में डॉक्टर से वो कपड़ा हटवा दिया क्यूंकि मैंने वो सारा प्रोसीजर देखना था और मेरे बहुत सारे सवाल भी थे पूरी प्रक्रिया लगभग आधे घंटे चली और मैं डॉक्टर से अपने सारे सवाल पूछता रहा डॉक्टर भी जवाब देता रहा अंत में डॉक्टर ने मेरी माँ से यही कॉम्प्लीमेंट दिया कि बालक बहुत मजबूत बना रखे हैं आपने।
समस्या में से समाधान देखने की यह कला मैंने अपनी माँ से सीखी है
मेरे छोटे भाई का पढ़ाई से मुकर जाना उसे ठीक करना
हम तीनों भाई एक ही स्कूल में पढ़ते थे हमारे पेरेंट्स दोनो नौकरी में थे सो उनका स्कूल से कोई खास कनेक्शन नही था ज्यादातर काम अपने खुद के जिम्मे होते थे। एक दिन मेरा छोटा भाई दीपक जो शायद अभी प्राइमरी क्लासेज में ही था दोपहर में स्कूल से आ कर बोला मेरा पढ़ाई में मन नही लगता और मैं कल से स्कूल नही जाऊंगा।
यह बात उसने सभी के सामने बोली। पिता जी कुछ कहते इससे पहले मां ने कह दिया चलो छोड़ो क्या करना है पढ़ के ठीक है स्कूल मत जाना।
हम सारे चुप हो गए, मां हर रोज दोपहर को खिचड़ी या बाजरे का मीठा भात बनाती थी हारे में सो वो रेडी था और सभी को परोस दिया । दीपक बहुत खुश नज़र आया के उसे यकीन नही था के इतनी आसानी से पढ़ाई से पैंडा छूट जाएगा।
बाजरे का भात खाते हुए दीपक भाई से मां ने पूछा के कल हम दोनों तो ड्यूटी चले जायेंगे कमल और दिनेश स्कूल चले जायेंगे तो पीछे से तुम क्या करोगे।
सवाल मुश्किल था तो दीपक ने कहा के मैं पेंटिंग का काम सीखूंगा।
मां ने कहा ठीक है आज दीपक को पेंटिंग का सामान दिलवा देते हैं और कल सुबह जब कमल और दिनेश स्कूल जाएंगे तो दीपक को पेंटर की दुकान पर छोड आएंगे।
शाम को पिता जी जा कर पेंटर से बात भी कर आये और दीपक के लिए कुछ पेंटिंग ब्रश और समान भी ले आये। अगले दिन ऐसे ही हुआ हम दोनों भाई स्कूल गए और दीपक पिताजी के साथ साईकल के डंडे पर बैठ कर चहकता हुआ अपने नए मुकाम की और चल पड़ा। दीपक का लंच बॉक्स भी उसी के साथ मे था।
पिता जी पेंटर को बोल आये के इसको अपने साथ ले जाना और अच्छे से पेंटिंग सिखाना। सुबह साढ़े आठ बजे दीपक पेंटर की दुकान पर पहुंचा और पेंटर उसको अपने साथ साइट पर ले गया जहां उसको ब्रश दे दिया रंग भरने के लिए।
दोपहर को पिताजी जब उसको मिलने गए तो वो चुपचाप बैठा हुआ था और सीधे अपना लंच बॉक्स उठा कर साईकल पर चढ़ गया और चुप चाप घर आ गया। लंच खाया नही था बस मुहं सूजा हुआ था। किसी ने उससे कुछ नही कहा दोपहर को फिर बाजरे का भात खाते हुए पेंटर वाले अनुभव पर कोई बात नही हुई।
अगले दिन हमने देखा दीपक सबसे पहले तैयार हुआ स्कूल ड्रेस पहनी और बैग उठा कर स्कूल के लिए तैयार हो गया।
उसके बाद कानून में पी.एच.डी. तक कभी पीछे मुड़ कर नही देखा। आजकल गुड़गांव में यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ाता है।
कई राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्र्रीय जर्नल्स में उसके लिखे रिसर्च पेपर्स छप चुके हैं। कानून विषय पर दो तीन पुस्तकें भी लिख चुका है।
अगर हमारी मां उस दिन दीपक को उपदेश देती या लालच देती तो दीपक देश समाज में उस तरह से कंट्रीब्यूट ना कर रहा होता जैसे कि आज कर रहा है।
बेवकूफ चाय वाले की कहानी
लुधियाना शहर में मेरी मुलकात पप्पू चाय वाले से हुई जिसने अपने ठेले पर बेवकूफ चाय वाला लिखा रखा था। पप्पू ने मुझे बताया कि 8 वर्ष पहले वो अपने रिश्तेदारों के साथ लुधियाना शहर में कमाने आया था , पढ़ाई केवल मिडल तक कि थी तो मजदूरी के सिवा कोई रास्ता नही था।
स्वभाव भोला होने के कारण इनके मालिक इन्हें बेवकूफ कहने लगे। एक दिन नौकरी को लात मार कर चाय का ठेला लगा लिया। ठेला क्या लगाए मुसीबत लगा ली नुकसान पर नुकसान हो रहा था।
एक दिन पुराने मालिक ने ठेला लगाए देखा तो सबके सामने कह दिया के पप्पू तुम तो जन्मजात बेवकूफ हो तुमसे न होगा। पप्पू ने समाज से मिल रहे इस बेवकूफ नामक टाइटल को इज़्ज़त से अपनाने का मन बनाया और इनके मन में यह भाव आया कि बेवकूफ हुए तो का हुआ भईया, जीने का हक़ नाहि है के हमार।
अगले दिन फ्लेक्स वाले भाई के यहां पहुंच गए बोर्ड बनवाने ” बेवकूफ चाय वाला” । जब फ्लेक्स वाले ने कहा के बोर्ड खाली खाली लग रहा है और कुछ भी लिखवाओ तो खूब दिमाग लगा कर कंटेंट तैयार किया और बोर्ड बना डाला।
टी स्टाल की ब्रांडिंग क्या किये कसम से लाटरी निकल आयी। पहले ही दिन 50 गुना सेल हुई सीधे। पप्पू जनता नगर चौराहे पर टॉक ऑफ दी टाउन हो गए।
आज बैंक , कम्पनी, फर्म, चलते फिरते लोग सब ग्राहक हैं। पप्पू अब अपने काम से संतुष्ट हैं और स्पष्ठ कहते हैं के मैं लुधिआना आ कर कामयाब हो गया हूँ।
मूलतः उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के पेसारी गांव के रहने वाले पप्पू के माता पिता अपने बेटे पर गर्व करते हैं। अपने घर पर सब सुविधा कर दी है।
पुराने मालिक एक दिन फिर आये थे कामयाबी देख कर अपनी गाड़ी से उतरे गले लगाया आशीवार्द दिया और चाय पी कर भी गए।