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धौले एंड काले कानून और किसानपुत्र की व्यथा का व्यावाहरिक पक्ष ग्रामीण भारत की तकलीफ

बाजरे दा सिट्टा

मेरे एक अजीज साथी हैं सांगवान साहब जिनसे मेरा परिचय फेसबुक के माध्यम से हुआ था और मुझे उनका स्वभाव और विचार ठीक लगे और मेरी उनसे कब दोस्ती हुई और पारिवारिक भाईचारे में बदल गयी पता ही नही चला। मेरे पास वो कई बार चंडीगढ़ आये और मुलाकातें होती रही और मुझे उनकी अपने भविष्य को बनाने सम्बंधित आकांक्षाओं और योजनाओं का पता चलता रहा।

बीच बीच में कई बार मेरी उनसे चर्चा बिजनेस सेटअप को लेकर हो जाया करती थी और पिछले एक डेढ़ साल में मैं दो बार उनके घर भी गया और उनके साथियों से भी मिला और मुझे उनकी नीयत और व्यवाहरिकता समझ में आई और मुझे लगा कि यदि इस ग्रुप को प्रोफेशनल्स के साथ जोड़ दिया जाये तो ये लोग एक व्यवस्थित बिजनेस सेटअप में काम करने लगेंगे।

एक कहावत है ना यदि आप कोई विचार मन में लेकर आते हैं तो पूरी कायनात आपकी मदद में जुट जाती है। कुछ दिनों के बाद मेरे एक सीनियर श्री विश्वजीत गुप्ता जी जो कि एक सीनियर कम्पनी सेक्रेटरी हैं और चंडीगढ़ चैप्टर के चेयरमैन भी हैं का फोन आया और उन्होंने मुझे कहा कि हिमाचल प्रदेश में एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जिसे केंद्र सरकार के एक अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिकों ने सरकारी रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत बनाया था और प्रोजेक्ट की अवधि समाप्त हो जाने के बाद अब वो इस कम्पनी को बेचना चाहते हैं। यदि आपके लिंक में कोई ऐसा व्यक्ति हो जो कम्पनी को खरीदना चाहता हो तो कृपया मुझे बताएं। मैं उसे कम्पनी ट्रांसफर करवा दूंगा तीन साल पुरानी और साफसुथरी बिना लफड़े की कम्पनी है। किसी भाई का काम बन जाएगा यह बात 25 जून 2021 की है।

मैंने सोचा क्यों ना यह बात अपने सोशल मीडिया नेटवर्क में समस्त भाईचारे को बताई जाए ताकि कोई भाई नई कम्पनी बनाने की सोच रहा हो तो उसका समय भी बाख जाए और उसे कुछ एडवांटेज भी मिल जाए। बस यह सोच कर मैंने सोशल मीडिया में पोस्ट लिख दी और कुछेक साथियों का फोन भी आया जिसमें से सांगवान साहब का फोन भी था।

मेरे मन में बात आ गयी के सांगवान साहब जो आटा मील , सरसों के तेल निकालने का संयंत्र और तम्बाकू पीसने का संयंत्र आदि लगा रहे हैं यह इनके लिये एक दम सेट बैठेगी और बस फिर अगले कुछ दिनों में सांगवान साहब और विश्वजीत गुप्ता जी ने मिल मिला कर ऊंट को बैठा लिया और सांगवान साहब ने कम्पनी का अधिग्रहण कर लिया।

अब कुछ दिन और बीते और कम्पनी अपनी जगह सेट हो गयी आटा मील भी चलने लगा , सरसों का कोल्हू भी रनिंग में आ गया अब एक सवाल उठा वो सवाल यह था कि मेरे इलाके में सरसों बहुत अधिक मात्रा में होती है और कुछ किसान सरसों को रोक लेते हैं और बाद में भाव चढ जाने के बाद में बेचते हैं। अब मुझे सरसों की आवश्यकता भी है और एक किसान मुझे बेचना भी चाहता है क्या मैं खरीद सकता हूँ?

जवाब था फिलहाल तो नही फिर सांगवान साहब ने पूछा क्यों नही ? जवाब था कि अभी आपके पुराने यानी धौले कानून लागू हैं। जिसके तहत किसान मंडी में जायेगा वहां आढती उसकी सरसों की बोली लगायेंगे और फिर उसकी सरसों खरीदी जायेगी और आप तो सरसों वैसे भी नही खरीद सकते हैं। क्योंकि आप तो आढती भी नही हो सरसों खरीदने के लिए आपको पहले मंडी में एक लाइसेंस लेना पड़ेगा और लाइसेंस लेने के लिए आपके पास मंडी में एक दुकान भी होनी चाहिए।

सांगवान साहब को थोड़ा सा पसीना आया फिर उनका सवाल था कि यदि मैं सीधी गाडी अपनी मील में उतरवा लूं तो क्या होगा फिर मैंने जवाब दिया कि होगा तो कुछ नही आप सरसों का तेल निकाल तो लेने लेकिन बिल नही काट पाएंगे और सारा काम चोर बनकर दो नम्बर में ही करना पड़ेगा। पूरी उम्र चोर बन कर दो नम्बर में जितना मर्जी काम करते रहो और किसी दिन कोई पूछताछ करने आ जाये तो ले दे कर निबटारा कर लो।

फिर सांगवान साहब का सवाल था कि मैं कोई चोर बनने के लिए पुलिस की नौकरी को लात मारकर थोड़ी ना आया हूँ। मुझे तो एक साफसुथरा इज्ज़तदार काम करना है। जिसमें मैं सरकार को पूरा टैक्स दूं और सर उठा कर चल सकूं और साल दर साल मेरा कारोबार भी बढे ये तो सिस्टम समझाओ मेरे को ऐसे तो हम जिन्दगी में कहीं पहुंचेंगे ही नही।

अब जब बात ऐसे मोड़ पर फंस गयी तो मैंने कहा कि सांगवान साहब जिस काले कानून को लेकर देश में जंग छिड़ी हुई है वही काला कानून आपको और आप जैसे लाखों एंटरप्रेंन्योर्स को सीधे किसानों से उनके फसलोत्पाद खरीदकर प्रोसेस करके बेचने की इजाजत भी देता है और आपको गाँवों में उद्योग लगाने के लिए प्रेरित भी करता है।

अब सांगवान की आँखों की पुतलियाँ और खुल गयी और उहोने अपना सारा फोकस चर्चा में उड़ेल दिया और एक गहरी सांस के साथ चर्चा का जो नतीजा निकला वो इतना भारी था कि हम में से कोई उसे उठाने के लिए खुद को योग्य नही समझ पा रहा था।

जो काले कानूनों का इतना विरोध किया जा रहा है कि इसे पहले वापिस लो फिर बात करेंगे और धौला कहे जाने वाला कानून हमें सिर्फ उत्पादक बनाये रखना चाहता है और यदि हम आगे बढ़ कर कुछ करना चाहें तो हमें बस चोर बन कर जीवन जीना पड़े बस यही ऑप्शन है।

अब क्या करें ? मैं यह भी नही चाहता कि किसान के साथ कोई छलकपट या किसी भी किस्म की घाट बाध हो और दूसरी तरफ मैं यह भी नही चाहता कि हमारे उपजाए फसलोत्पाद हमारे सामने सामने हमारे हाथों से बाहर रहें जिन्हें हम चाह कर भी प्रोसेस ना कर सकें।

यह चर्चा आज लगभग पूरे दिन किसी ना किसी रूप में चलती रही और हम दोनों भाई चंडीगढ़ पंचकूला जीरकपुर मोहाली में अपने मिलने जुलने वाले काम भी करते रहे और शाम को जब सात बजे सांगवान साहब ने मुझे मेरे घर के बाहर उतारा और वो दादरी जाने के लिए वापिस मुड़े तो उनकी आँखों में एक चमक तो थी ही सिस्टम से लड़ने और काम को सेट करने की दूसरे उनके मन में यह भाव भी मैंने पढ़ा कि ये धौले कहे जाने वाले कृषि कानून भी बहुत गहरे काले हैं जो हमें आगे बढने से रोकते हैं।

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