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भारत के कोने कोने में बिजनेस क्रिएटिविटी के स्थानीय चैम्पियन बजा रहे हैं अपनी कामयाबी का डंका

business creativity ka danka

जख्मी जूतों का हस्पताल डॉ राम जी लाल की कहानी

यह साल 2005 था मैं राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान (National Innovation Foundation) के साथ मिलकर उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में आविष्कारकों और परम्परागत ज्ञान धारकों की खोज करने का काम कर रहा था और इस काम में मुझे बहुत अनुभव हो गया था मेरी आँखें भीड़ में से कुछ छोटा सा भी अलग कुछ दिखाई दे तो उसे तुरंत पहचान जाया करती थी और उसके पीछे अक्सर कोई ना कोई आविष्कार मिल ही जाया करता था। ऐसे ही एक दिन अचानक मेरी आँख ने बिजनेस क्रिएटिविटी के चैम्पियन रामजी लाल को पकड़ा और फिर जीवन में बिजनेस क्रिएटिविटी नामक एक नए अध्याय का उदय हो गया।

इंद्रपुरी जो भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा (Indian Council of Agricultural Research) के पीछे एक रिहायशी इलाका है वहां एक दिन मैं अपने सीनियर डॉ हरपाल सिंह सांगवान जी से मिलने के लिए पैदल ही जा रहा था तो मैंने देखा कि एक खम्भे पर बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है जख्मी जूतों का हस्पताल डॉ राम जी लाल (Jakhmi Jooton ka Haspatal Dr.Ramji Lalऔर मैं अपनी लाइन से आउट होकर भीड़ को चीरता हुआ सीधे बोर्ड के नीचे जा पहुंचा जहां एक खुशमिजाज व्यक्ति मज़े से जूते सर्विस करने में जुटा था। उसने काम करते करते हुए मुझे देखा और वहीँ पड़ी पेटी पर बैठने का इशारा कर दिया।

मैं वहां जा कर बड़े आराम से पेटी पर बैठ गया और दे दना दन सवाल गाड़ने लग गया, व्यक्ति जिसका नाम रामजी लाल था उसने कहा दस मिनट आराम से बैठो फिर कहानी सुनाता हूँ।फिर इतने में वहां एक चाय देने वाला लडका आया और उसने जैसे ही राम जी लाल के लिए चाय रखी और उनके चेहरे कि ओर ताका तो उनकी आँखों के इशारे से उसने एक चाय मेरे हाथ में भी थमा दी क्यूंकि यह रोज का काम था । रामजी लाल जानते थे कि मैं बोर्ड देख कर ही आया हूँ।    

जल्दी से काम निबटा कर राम जी लाल ने चाय पीते पीते मुझे बताया कि वो लगभग दो दशक पहले इस इलाके में आये थे और जूता सर्विस की दुकान खोली जो धीरे धीरे चलने लगी। बाजार में कोई खास भीड़ भाड़ तो थी नही लेकिन रोजगार में गुजारे लायक आमदनी होती थी। फिर धीरे धीरे बाजार विकसित होने लगा और जहां राम जी लाल का ठीया था उसके आगे रेहड़ियां लगने लगी, ग्राहकों को राम जी लाल का ठीया दिखाई नही देता था और ग्राहक आगे चले जाते थे।

बाजार की इकॉनोमी ग्रो कर रही थी सभी दुकान और रेहड़ियों वाले तरक्की कर रहे थे लेकिन राम जी लाल का धंधा बन्द हो रहा था। फिर एक दिन ऐसा आया के सुबह से रात हो गयी लेकिन एक बोहनी तक नही हुई। राम जी लाल ने सुबह दुकान मालिक से बात की के आप ये दो रेहड़ियां हटवा दीजिए ताकि मेरा ठीया भी दिख जाए लेकिन दुकानदार ने कहा के ये रेहड़ी वाले मुझे हर रोज शाम को पैसा देते हैं आप भी यदि मुझे पैसा दें तो मैं ये दो रेहड़ियां हटवा दूंगा।

राम जी लाल मायूस हो गए और रात को ठीया बदलने का मन बना लिया, फिर उनके मन मे एक बात आई के यदि वो नई जगह जाएंगे फिर वहां बाज़ार विकसित होगा और उन्हें उठा कर बाहर  फैंक देगा। उनके अंदर का फाइटर जागा और उन्होंने लड़ने का मन बनाया। उन्होंने जब अपनी समस्या को क्वांटिफाई किया तो वो निकली विजिबिलिटी और जब रिसोर्स को गिना तो वो था एक बिजली का खम्बा अब इसी पर ही कुछ हो सकता था। रामजी लाल हिम्मत बाँध कर पेंटर के पास पहुंचे और उसे खा कि भाई एक छोटा सा बोर्ड बना दो उसपर लिख दो मोची।

पेंटर चूँकि स्वभाव से ही क्रिएटिव होते हैं उन्होंने रामजी लाल से कहा कि देखिये मोची लिखने से बात नहीं बनेगी बोर्ड कुछ ऐसा होना चहिये जो सीधे पढने वाले के मन पर असर करे। राम जी लाल ने मुझे बताया उसदिन कोई ख़ास ही बात थी पेंटर भी जैसे मेरे लिए फ्री था हमने बहुत सोचा और बहुत सारे शब्दों के वाक्य बनाये कई कप चाय के पी गये। लेकिन अंत में हमने यही लाएं फाइनल की

जख्मी जूतों का हस्पताल डॉ राम जी लाल और बस पेंटर बाबू ने सफ़ेद बैकग्राउंड वाले बोर्ड पर लाल पेंट से इन्ही लाईनों को लिख कर  पाटिया बना कर टांग दिया।

पहले दिन से ही कमाल हो गया। तीन बड़ी बातें हुईं।

डॉ शब्द ने रामजी लाल के व्यवसाय के लिए इज्जत की व्यवस्था की सभी अब रामजी लाल को अब डॉ साहब पुकारने लगे।

दूसरे रोजगार की समस्या हल हो गयी अब खूब काम ही काम था।

तीसरे अब बड़ी दुकान वाले भी जब अपना पता बताते थे तो ऐसा कहने लगे डॉ राम जी लाल के जख्मी जूतों के हस्पताल से पांचवी दुकान मेरी है।

राम जी लाल अब इंद्रपुरी मार्किट के हीरो थे।

मेरे लिए राम जी लाल से मिलना एक बड़े खजाने की चाबी मिलने के जैसा था क्यूंकि मैं अभी तक पिछले चार सालों से तकनीकी आविष्कार ही ढूंढ रहा था बिजनेस क्रिएटिविटी का मुझे कोई आईडिया ही नहीं था। मैंने राम जी लाल का केस भारतीय प्रबंध संस्थान के प्रोफेसर अनिल गुप्ता जी से सांझा किया तो उन्होंने मेरा उत्साह बढाते हुए कहा कि पूरा अमरीका ऐसी छोटी छोटी केस स्टडीज से बना है। उन्होंने ही मुझे शब्द सुझाया बिजनेस क्रिएटिविटी।

उसके बाद मेरे आई स्कैनर में एक और आयाम फिट हो गया और मुझे सभी जगह अलग अलग तरह के बिजनेस क्रिएटिविटी (Business Creativity)वाले आविष्कारक मिलने लगे और देखते ही देखते इनकी संख्या ढाई सौ से ज्यादा हो गयी।

देश भर में लाखों करोड़ों उदहारण ऐसे भरे पड़े हैं जिन्हें डॉक्यूमेंट करने की तत्काल आवश्यकता है और इस काम में मैनेजमेंट संस्थान की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है । समर इंटर्नशिप कार्यक्रम के दौरान मैनेजमेंट स्कूल को अपने विद्यार्थियों को स्थानीय बाजारों में उतारना चाहिए और उन्हें कहना चाहिए कि वे ऐसे आविष्कारकों को ढूंढे और उनकी कहानियों को डॉक्यूमेंट करें।     

ऐसा करने से भारतीय आविष्कारकों को दुनिया में एक नयी पहचान मिलेगी और भारतीय मेधा और उद्यमशीलता का डंका पूरे विश्व में बजेगा। क्यूंकि हमारे ये स्थानीय आविष्कारक अपनी मेधा और क्रिएटिविटी से ऐसी ऐसी काम्प्लेक्स प्रोब्लम्स को सोल्व करते हैं जिन्हें केवल धन की मदद से सोल्व नहीं किया जा सकता है।       

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