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धर्म सापेक्षता धर्म निरपेक्षता और साम्प्रदायिकता

धर्मनिरपेक्षता धर्मसापेक्षता साम्प्रदायिकता

बड़े वर्षों तक धर्मनिरपेक्ष शब्द को साम्प्रदायिक के सामने रख कर लोगों को अपने कर्तव्य पथ से डिगा कर मंडी में तब्दील करने का कुत्सित प्रयास व्यवस्था के द्वारा किया जाता रहा है।

धर्म सापेक्षता और धर्म निरपेक्षता आपने सामने के शब्द हैं जबकि साम्प्रदायिकता टुच्चा कांसेप्ट है जिसका सापेक्षता और निरपेक्षता से किसी तरह का भी लेना देना नही है।

हमारे पुरखों ने धर्म की रक्षा के लिए सर कटवाए, धन संपत्तियां छोड़ी,जमे जमाये कारोबार छोड़े, रावी सिंध चिनाब जैसे दरिया छोड़े लेकिन अपना धर्म बचा लाये।

लोग यहां अभी दाल फुल्के के जुगाड़ में लगे थे के षड्यंत्रकारियों ने चुपके से कांटा बदल कर तीन पीढ़ियों को धर्मनिरपेक्षता के ट्रेक पर धकेल दिया और हालत ये बन गयी के लोग खुद से नफ़रत करने लग गए धर्म कमजोर होने से लोग जातियों में बंट गए।

देश पर लम्बे समय तक डिवाइड एंड रूल करने में इस धर्मनिरपेक्षता ने बहुत अधिक रोल प्ले किया है।

धर्म सापेक्ष लोग अपने कर्तव्यों को समझते हैं और अपने अतीत से जुड़े रहते हैं और धर्म नस्लों को बांध कर रखने का टूल है।

धर्म मनुष्य पर निम्नलिखित कर्तव्य प्रतिपादित करता है

स्वयं के प्रति कर्तव्य
परिवार के प्रति कर्तव्य
पड़ोसी के प्रति कर्तव्य
कुटुंब के प्रति कर्तव्य
अतिथि के प्रति कर्तव्य
प्रकृति के प्रति कर्तव्य
पशु पक्षियों के प्रति कर्तव्य
गांव के प्रति कर्तव्य
स्थान के प्रति कर्तव्य
ग्राम के प्रति कर्तव्य
कुल के प्रति कर्तव्य
दूसरे धर्मावलंबियों के प्रति कर्तव्य
अत्याचारियों अनाचारियों जुल्मी लोगों के प्रति कर्तव्य
राज्य के प्रति कर्तव्य

और भी बहुत सारे विस्तार से बताये गए हैं।

धर्म सापेक्षता समाप्त हो जाने से व्यक्ति अपने मूल से कट जाता है और सहजीविता समाप्त हो जाती है। नस्लें भटक जाती हैं और फिर एक दूसरे को वढ़ने लगती हैं।

यदि एक हिन्दू दूसरे मुसलमान और ईसाई को स्वीकार कर सकता है तो इन दोनों को भी स्वीकार करना ही चाहिए ।

अपने अपने टेक्स्ट सारे ठीक करो और बन्दे दे पुत बनकर आराम से रहो, यह देश सांझा है और इसको अपने अपने नज़रिये से भोग कर आगे बढ़ जाओ।

इतिहास के बुरे दौर सीखने के लिए होते हैं न कि उन्हें दोहराने के लिए।

सभी धर्म सापेक्ष लोगों का भारत मे स्वागत है और रहेगा क्योंकि धर्म का एक मात्र ही अर्थ है और वो है कर्तव्य।

कर्तव्य परायणता का कोई मुकाबला नही है।

धर्म सापेक्षता को त्वज्जोह देना ही ईस राष्ट्र के हित में है।

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