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भगदड़ की घटनाएं: श्रद्धा स्थलों पर बढ़ता मौत का खतरा

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1 नवंबर 2025 को आंध्रप्रदेश के वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में रेलिंग टूटने से भगदड़ में 9 लोगों की मौत।
  • 27 सितंबर 2025 को तमिलनाडु के करूर में एक रैली में भगदड़ से 39 लोगों की जान गई और 50 से अधिक घायल।
  • 27 जुलाई 2025 को हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर के पास फैली अफवाह के बाद भगदड़ में कई लोगों की मौत।
  • 29 जून 2025 को पुरी की रथ यात्रा में भगदड़ से 3 लोगों की मौत।
  • 8 जनवरी 2025 को तिरुपति में भगदड़ से 6 लोगों की मृत्यु और कई घायल।
  • 2 जुलाई 2024 को हाथरस में सत्संग में भगदड़ से 121 लोगों की मौत और सैकड़ों घायल।
  • गोवा, दिल्ली, प्रयागराज और अन्य स्थानों पर भी हाल के वर्षों में ऐसे कई दुखद हादसे।
  • 3 फरवरी 1954 को कुम्भ मेले में भगदड़ से 800 लोगों की जान गई थी।
  • 1986 में कुम्भ के दौरान भगदड़ में 200 लोगों की मृत्यु।
  • 14 जनवरी 2011 को सबरीमाला में भगदड़ में 106 लोग मारे गए।

देश में भीड़ के कारण होने वाली भगदड़ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, और हर हादसे के साथ कई परिवारों की दुनिया उजड़ जाती है। हाल ही में आंध्रप्रदेश के प्रसिद्ध वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में रेलिंग टूटने के बाद मची भगदड़ ने कई लोगों की जान ले ली। यह हादसा सुबह करीब साढ़े नौ बजे हुआ, और देखते ही देखते श्रद्धा का स्थान शोक का स्थल बन गया।

तमिलनाडु, हरिद्वार और हाथरस की दर्दनाक घटनाएं

कुछ ही सप्ताह पहले तमिलनाडु के करूर में आयोजित एक समारोह में अत्यधिक भीड़ के दौरान मची भगदड़ में 39 लोग मारे गए थे। इस घटना में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग बड़ी संख्या में घायल हुए। क्षमता से कहीं अधिक भीड़ एकत्रित होने और उचित प्रबंधन न होने के कारण यह भीषण तस्वीर सामने आई।

हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर क्षेत्र में अफवाह फैलने के बाद उत्पन्न अराजक माहौल में भी कई जानें चली गईं। इसी तरह, 2024 में हाथरस के एक सत्संग स्थल पर हुई भगदड़ में 121 लोग मौत के मुंह में समा गए। यह घटना देश की सबसे भयावह भगदड़ों में से एक मानी गई।

प्रबंधन की कमी और प्रशासन की जवाबदेही

लगातार हो रही ऐसी त्रासदियां बताती हैं कि प्रशासनिक तैयारियां बेहद कमजोर हैं। लाखों लोग शामिल होने वाले आयोजनों में भी पर्याप्त सुरक्षा, निकासी मार्ग और नियंत्रण व्यवस्था का अभाव रहता है। इन स्थानों पर श्रद्धा के नाम पर होने वाली भीड़ को संभालने के लिए प्रभावी आपदा प्रबंधन प्रणाली मौजूद नहीं होती।

इतिहास में भी कई बड़े हादसे दर्ज

कुम्भ मेलों से लेकर मंदिरों तक, देश कई बार ऐसे भयानक क्षणों का गवाह रहा है। 1954 के कुम्भ मेले में भगदड़ में 800 लोग मारे गए थे, जबकि 1986 में भी कुम्भ के दौरान 200 लोगों की मौत हुई थी। सबरीमाला, नैना देवी, चामुंडा देवी, जोधपुर और बिहार के कई मंदिरों में भी ऐसी घटनाएं लगातार सामने आती रही हैं।

क्या होना चाहिए आगे का रास्ता

हर बड़े धार्मिक या सार्वजनिक आयोजन में भीड़ नियंत्रण के लिए प्रशिक्षित दल की तैनाती आवश्यक है। मंदिर समितियों और आयोजनकर्ताओं को आपदा प्रबंधन के मानकों का पालन करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। भीड़ की अनुमानित संख्या और स्थल की वास्तविक क्षमता के आधार पर योजनाएं तैयार हों।

सिर्फ मुआवजा देना समाधान नहीं है। यदि पहले ही सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए तो कई निर्दोष जीवन बच सकते हैं। अब समय है कि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से ले और लोगों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता बनाए।

 

 

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